एक बार भगवान् शिव के प्रिय और वाहन नंदी बैल वन भ्रमण को निकलते है ,मौका देखकर एक शेर उनसे दोस्ती कर लेता है ,वन के अन्दर पहुचने पर बाघ नंदी को घेर लेता है ,नंदी को खाने को कहता है ,नंदी बार बार छोड़ कर हटने को कहते है ,वह नहीं मानता है ,बाघ कहता है तुम किसी के भी प्रिय हो मै तुम्हे खाकर रहूगा ,तुम्हारा प्रिय मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ,
नंदी कहते है ,तुम मित्र के नाम पर विश्वासघाती हो ,नंदी शिव जी का स्मरण करते है ,शिव जी आते है ,तो वह शेर शिव जी को नंदी जी से अच्छा वाहन बनने का लोभ देता है ,
क्रोध से भरकर शिव जी बाघ का सर्वनास कर देते है ,सारे दांत उखाड़ देते है ,
तब नंदी बोलते है ,प्रभु चूँकि ये मेरा मित्र है ,अतः मुझे भी इसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए ,
तब शिव कहते है ,मै इसको अपना योग का आसन बनाता हु , शिव जी उस पर बैठते है ,तो वह जमीन से सट कर पतली चादर बन जाता है ,
तब शिव कहते है ,नंदी जब तक ये तुम्हारे जैसा मित्र नहीं बनेगा तब तक पतली चादर की तरह जमीन से चिपका रहेगा ,ये तुम्हारे पैरो के बराबर भी नहीं आ पायेगा ,तब से आज तक न तो वह बाघ नंदी जैसा मित्र बन पाया और न जमीन से उठ पाया , कभी कभार दुनियादारी के ,भूत भावन भूतो को प्रिय ,भोले भंडारी ,शिव भगवान उस पर सवार होकर अपनी साधना भी करते है,
जाते जाते मन और आचरण से दुषित होना पाप है ,
और पुण्य निष्काम भाव से दुसरो का हित और भला चाहना पुण्य है ,
न vampire बनो न बनावो .....
लेखक ;-एक साथी
रविकान्त यादव
२-३-2011
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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