Sunday, August 21, 2011

रण-संग्रह


भरत वंश का सबसे बड़ा युद्ध होने को था ,| कौरवो -पांडवो का युद्ध  निश्चित था, जोड़ तोड़ चल रही थी ,पांडव कृष्ण के यहाँ जाने का विचार करते है ,दुर्योधन पहले ही वहा कृष्ण के यहाँ पहुच जाता है,कृष्ण सो रहे थे ,दुर्योधन यह देखकर सिरहाने बैठकर सोचता है, मेरी आपको जरुरत पड़ेगी , अतः कृष्ण सोते रहते है, तभी पांडव-अर्जुन आते है, वह पैर की तरफ बैठकर सोचते है, मुझे आपकी जरुरत है, कृष्ण की नीद टूटती है,|पहले अर्जुन की से कहने को कहते है,|

इस पर दुर्योधन कहता है,बासुदेव पहले मै आया हु ,इस पर कृष्ण कहते है, नजर तो पहले अर्जुन पर पड़ी है,अतः पहले अर्जुन को कहने दो ,अर्जुन कहते है, ये बासुदेव युद्ध में मुझे आपकी सहायता चाहिए ,तब कृष्ण
कहते है,मै युद्ध में रहूगा पर विना अस्त्र -शस्त्र रहित एक बार फिर सोच लो अर्जुन, | अर्जुन कहता है, मुझे आपकी जरुरत है,|
दुर्योधन सोचता है, अर्जुन कितना मुर्ख है, उसकी पारी  आती है, तो वह कहता है,मुझे आप अपनी सारी अतुल्य सेना दे दीजिये , श्री कृष्ण कहते है, ठीक है,| 
इस प्रकार महाभारत युद्ध में, अकेले श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बन अर्जुन का पग-पग साथ निभाते है,|इस प्रकार श्री कृष्ण अपने दोनों याचको की भावनावो का आदर कर उन्हें अपनी सहायता प्रदान करते है,| और सत्य के साथी -सारथी बनते है,|

धन -दौलत रखी रह गयी ,रण-संग्रह बना सम्मान |
कृष्ण ने रखा सत्य का मान ,
महाभारत बन गयी मान-अपमान ,
महागाथा बन गयी ,असत्य के साथ की चली गयी जान ||
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लेखक ;- झपकी के साथ .....रविकांत यादव 


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