हमारे धर्मग्रन्थ में रचित रामायण से एक कहानी , माता सीता और भ्राता लक्षमण के शोक में एक बार भगवान् राम अपने महल में थे , वहा उन्होंने फर्श पर एक दरार में अपनी अंगूठी गिरा दी तथा हनुमान जी से उसे लाने को कहा , हनुमान जी ने अत्यन्त छोटा रूप भवरे जैसा बनाया व वे अंगूठी के पीछे -पीछे भागे ,अंगूठी पाताल लोक होते हुए किसी अंजान जगह जा गिरी हनुमान जी भी वहा पहुंचे परन्तु जिस जगह वह पहुंचे वहा तमाम अंगूठियों का पर्वत नुमा ढेर था । हनुमान जी ने अंगूठी उठाई परन्तु आश्चर्य सारी अंगूठी श्री राम भगवान् की ही थी । उन्होंने वहां स्थित जो वहा का रक्षक था से पूछा तो उसने कहा आप अजेय अमर हनुमान हो व पहले भी नहीं हो ।
ये सारी अंगूठियां श्री राम की ही, है । परन्तु अलग अलग युग काल व अलग अलग ग्रहों पर उत्पन्न हुए श्रीराम की है । यह सैकड़ो हज़ारो कल्पो से चली आ रही अंगूठियों का ढेर है । अभी और भी कितने राम होगे और ये अंगूठियों का ढेर बढ़ने हेतु भी अभी काफी जगह है ।
इतना सुन कर हनुमान रोने लगे व समझ गए श्रीराम ने उन्हें ज्ञान के उद्देश्य मात्र से ही यहाँ भेजा था ।
यह रामायण की कहानी ब्रह्माण्ड में पृथ्वी जैसे बहुतायत असंख्य ग्रहों की तरफ ही इंगित करती है ।
वो कहते है , न कि विज्ञान जहां समाप्त होता है , धर्म वहा से आरम्भ होता है , तब जानकार लोग धर्म -धर्म चिल्लाते है ,। जिस दिन हम मानव मंगल या चांद जैसे ग्रह पर वृक्ष या पेड़ पौधे ऊगा लेंगे वहा बसने में कामयाब भी हो जाएंगे ।
२) एक चरवाहा था , अपने साथियो संग खेल खेल में वह राजा बन कर एक टीले पर बैठता , टीले पर बैठते ही उसमे गजब की न्याय व तर्क व धर्म की शक्ति आ जाती वह ऐसे फैसले सुनाता की लोग आस्चर्य हो जाते , धीरे धीरे यह बात राजा भोज तक पहुंची , राजा भोज ने उस टीले की खुदाई कराइ तो वहा एक सिंघासन मिला , जो राजा विक्रमादित्य का था ,। राजा भोज ने उसे झाड़ पोंछ कर रखवाया तो वह जगमगा चमचमा उठा , ।
राजा भोज उस पर आसीन होने गए तो उस सिंघासन पर बानी 32 पुतलियों (स्त्रीलिंग) या परी में से एक ने प्रकट होकर उन्हें रोका तथा एक कहानी सुनाई व कहा यदि वो इस तरह योग्य है , तभी इस सिंहासन पर बैठे , इस तरह 32 पुतलियों ने उन्हें 32 दिन 32 कहानिया सुनाई , व अंत में राजा भोज को उस श्रीहीन सिंहासन का परित्याग करना पड़ा , वह उस पर आसीन योग्य नहीं था ।
अतः कह सकते है , किसी की उपलब्धियों को देखकर या जान कर उसके जैसी बराबरी उचित नहीं है , जो जिस योग्य है , उसे अपनी योगयता में ही रहना चाहिए , पर संपत्ति पर कुदृष्टि सही नहीं है ।
लेखक;- कहानियो से ...... रविकान्त यादव for more click ;-facebook.com/ravikantyadava
No comments:
Post a Comment