Friday, February 18, 2011

संत रविदास







आज संत रवि दास जी की जयंती है ,और आज माघ पूर्णिमा का प्रमुख स्नान भी है , संत रविदास एक महान संत माने जाते है ,उनका मंदिर जन्म और कर्म स्थान हमारे वाराणसी में ही है ,जिसका प्राचीन नाम बे-गम पुरा है ,जिसका अर्थ है ,जहा गम न हो ,आज ये स्थान कृष्ण के नाम के साथ जुड़ कर सीर गोवर्धन पुर हो गया है ,मै इस स्थान पर बहुत पहले से जाने की हसरत पाले हु पर आश्चर्य अभी तक जा नहीं पाया ,संत रविदास द्वारा ज्ञान ही नहीं कर्म को महत्व देकर उसे पूरी निष्ठा से निर्वहन करना कोई उनसे सीखे ,वो कहते थे मन चंगा तो कठौती में गंगा उन पर पूरी की पूरी फिल्मे भी है ,जिसमे रानी के सोने की  कंगन की कथा है ,उनकी अमृत वाणी आज भी हमें सन्देश देती है ,

एक बार श्री कृष्ण वेष बदल कर रविदास जी से मिलते है ,कहते है महात्मन आप को यह जुते चप्पल का कार्य शोभा नहीं देता , 
रविदास जी कहते है ,मनुष्य के रूप में ही कही भगवान ही मेरे पास आ जाये तो उनके पैरो के धुल स्पर्श से बड़ा और क्या सौभाग्य होगा ,जब पत्थर को स्पर्श से मोक्ष मिल सकता है ,तो मै तो ईश्वर का कार्य कर रहा हु , थके हारे पधारे की सेवा भी हो जाती है ,वैसे भी लोग कितनी आशा लेकर मेरे पास आते है ,उन्हें मेरे कार्य में ख़ुशी मिलती है और मुझे उनको खुशी देखकर खुशी मिलती है ,वैसे भी प्यार और आशा से पास आये व्यक्ति को मायूस करना एक बहुत बड़ा पाप है ,मै वह पाप नहीं कर सकता ,यदि आज कही पाप है ,तो पुण्य आत्मा भी होगी ही ,शांत श्री कृष्ण रवि दास जी को ब्रह्माण्ड का सबसे कीमती पत्थर (पारस) देने का विचार कर प्रणाम कर फिर दोबारा आने को कहकर चले जाते है ,
संत रविदास जी के लिए ;-
मन चंगा  गंगा सा निर्मल ,
प्यासे पथिक के लिए बन गए जल ,
सत्कर्म करना ही है जीवन का हल ,
प्रेम तो है ही ,ऐसी आस्था ,बस इसे बहने दो अविरल ,

लेखक ;-हार्दिक नमन 
रविकांत यादव  एम् कॉम .२०१० 

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