Sunday, February 19, 2017

चिरंजीवी (8 immortal)


यहाँ चिरंजीवी या अमर से तात्पर्य  सनातन (eternal ) नहीं है । 
हमारे हिन्दू धर्म ,वेद  आदि में जिक्र है , परंतु वर्तमान वैज्ञानिक साक्ष्य  प्रमाण नहीं है । कि 8 व्यक्ति या देव आज भी जीवित है  या नहीं । 
धर्म अनुसार ये धरती के अंत तक जीवित रहेगे , तथा ये आज भी मानव भेष में या मानव रुपी शरीर में आज भी कही न कही मौजूद है । 
चाहे वे हमारे बीच में हो या किसी अन्य जगह , अतः कह सकते है , धरती के अंत तक या कार्य सिद्धि तक ये दीर्घजीवी  है । 

आइये जानते है , ये 8 लोग अमर क्यों और कैसे है ।??कहा गया है , कल्कि अवतार में ये लोग उनकी मदद करेगे व किसी न किसी कारण से धरती पर है । 


1 )परशुराम ;-सप्त ऋषियों में से एक ऋषि जमदाग्नि व रेणुका के पुत्र परशुराम।  इन्हें विष्णु का 6ठा अवतार माना जाता है , इनका अस्तित्व सतयुग से ही है । शिव इनके गुरु है , व शिव कृपा से इन्हें परशु दिव्यास्त्र प्राप्त हुआ । 
अपने पिता की आज्ञापालन से पिता द्वारा 4 वरदान मिला तब इन्होंने ४ वरदान में एक वरदान ,अमर होने का वरदान भी मांग लिए या लंबे जीवन की कामना की । 
माना जाता है , या जिक्र है , आज भगवान् परशुराम आज भी उड़ीसा के महेन्द्र गिरी पर्वत पर रहते है ॥ 


२)हनुमान ;-पवन पुत्र  व सुर्य शिष्य  भगवान हनुमान जी को आठो  सिद्धियों  व नव निधियों के ज्ञाता दाता  है । अष्ट सिद्धिया ;- १) अणिमा ;- मनचाहा रूप छोटा करना । 
२)महिमा ;- मन इच्छा से विशाल रूप धरना । 
३)गरिमा;-भार बढ़ाना विशाल पर्वत जैसा । 
४)लघिमा ;- भार हल्का कर लेना व पल में कही भी आना -जाना । 
५) प्राप्ति;- पशु पक्षी की भाषा समझना तथा समय को देखना तथा इच्छित वस्तु प्राप्त करना आदि का वरदान । 
६)प्राकाम्य ;- उड़ना , पानी में रहना , व पाताल तक जाना, जवा रहना तथा रूप बदलना । 
७) ईशित्व ;- दैवीय शक्ति को प्राप्त , तथा फिर से जीवन देना । 
८) वशित्व ;-इस सिद्धि से भगवान् हनुमान जी जितेन्द्रिय है , स्वयं मन पर वश है । व दुसरे को अपने वश में करने की शक्ति ।
 हनुमान जी के पास नव निधियां अर्थात  नौ प्रकार की सभी प्रकार की संपत्ति (धन) को ज्ञाता  तथा  देने वाले भी है । ये सभी अष्ट सिद्धिया और नौ निधियां माता सीता ने इन्हें वर स्वरूप दिया । अतः कह सकते है , एक तरह से ये अमरता तुल्य वरदान है । 
बचपन में ही इन्हें बज्र प्रहार के समय अनेक देवताओ के वरदान के साथ शिवजी  व यमराज से अमरता का वरदान भी  मिल चूका था । 
ये आज तमिलनाडु में  रामेश्वरम के गंधमादन पर्वत पर  या  एक गंधमादन पर्वत तिब्बत चीन में से आगे भी है , जहा नेपाल (मानसरोवर ) दूसरा  भूटान के पहाड़ियों के आगे से और तीसरा रास्ता अरुणचाल से  चीन के रास्ते जाया जा सकता है । जहा हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में गंधमादन पर्वत पर हनुमान जी रहते है । गंधमादन से आशय सुगन्धित वन है ॥ 
एक बार हनुमान जी दक्षिण से उत्तर की तरफ हिमालय क्षेत्र में द्रोणगिरी पर्वत से जो आज उत्तराखंड में पड़ता है । से संजीवनी बूटी जिसे मृत संजीवनी  या विसैल्यकर्णी  या सुवर्णकर्णी या संधानि भी कहते है । जिसे अंग्रेजी में selaginella bryopteris कहते है । 
उड़कर लाकर भक्त भ्राता लक्ष्मण जी के प्राण भी बचाये थे । 
 हनुमान जी अपनी इच्छा से जब तक धरती पर श्रीराम का नाम रहेगा तबतक धरती पर रहेगे । माना जाता है , श्री राम कथा में सबसे पहले आने वाले व सबसे बाद में जाने वाले हनुमान जी होते है ॥ 



3)वेद व्यास जी  ;-ऋषि परासर व सत्यवती पुत्र जिन्होंने चारो वेद , १८ पुराण , व महाभारत व  गीता ज्ञान की रचना की, महाभारत में मुख्य अहम् योगदान या पात्र , भगवान विष्णु और गणेश के वरदान और अपने तपोबल और योग साधना से अमर है ।

 तथा आज उत्तराखंड के गंगातट के बद्रीनारायण क्षेत्र में रहते है । 



4 )राजा दानवेन्द्र महाबलि  ;-भक्त प्रह्लाद के पौत्र या वंसज दानवो के राजा बलि ,
 परम दानवीर अपने तप प्रताप व भक्ति से भगवान् विष्णु ( वामन अवतार ) को गुलाम बना लिए थे । 
तथा विष्णु भगवान् ( वामन) के वरदान से अमर है । व पाताल के राजा है । 
ओणम त्यौहार के दिन केरल में अपने लोगो को भक्तो को राजा बलि आशीर्वाद देने आते है । 


5 )विभिषण  ;-रावण के भाई परंतु सज्जन भक्त, धर्म के साथी बाद में लंका के राजा बने श्रीराम के वरदान से चिरंजीवी या अमर है । ये आज केलानिया क्षेत्र में रहते है , जो देश, श्रीलंका के कोलम्बो शहर में है । 



६)कृपाचार्य ;-बिना गर्भ के जन्मे ऋषि शरद्वान के पुत्र , शांतनु द्वारा पालन पोषण  तथा पांडवो के कुलगुरु व श्री कृष्ण के वरदान से चिरकाल तक जीवित रहने का अमरता का वरदान । इनकी बहन कृपी की शादी गुरु द्रोणाचार्य से हुई थी ॥ 
ये पांडवो के कई वंश के साथ रहे , ये आज हस्तिनापुर में जो मेरठ से  35 km दूर है , या दिल्ली से 60 km इंद्रप्रस्थ में हो सकते है । तथा कही आस -पास अकेले होने का जिक्र है ॥ 



7)मार्कण्डेय ऋषि ; मृकण्डु निसंतान दंपत्ति को शिव तप से वर व शर्त स्वरुप पुत्र मिला बालपन से ही विद्वान , वरदान के साथ दीर्घायु न होने का इनके बचपन में ही मरने  का योग निश्चित था । जिन्होंने अपने माता- पिता से जान लिया । व मृत्यु की सही गणना कर लिए ॥ 
परंतु अपने ज्ञान व शिव की भक्ति से इन्होंने काल यमराज के आने पर व मृत्यु फाँस फेकने पर  शिव आह्वाहन किया शिव आकर काल से रक्षा करते है । इन्होंने महामृत्युंजय मन्त्र को सिद्ध किया व शिवकृपा से अमर हुए या माने जाते है ॥ 
इनका प्राचीन स्थान गंगा व गोमती के संगम पर वाराणसी व गाज़ीपुर बॉर्डर ग्राम कैथी में मार्कण्डेय महादेव आज भी शिवलिंग रूप में विद्यमान है ॥ तथा आज उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के यमनोत्री मंदिर के क्षेत्र में रहते है ॥ यही रहकर इन्होंने मार्कण्डेय पुराण की रचना भी की थी ॥ 


8) अश्वस्थामा ;-गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र जो शिव आशिर्वाद से पैदा हुआ था । महाभारत युद्ध में अश्वस्थामा ने अपने ब्रम्हास्त्र को पांडवो के आखिरी वंश अभिमन्यु पुत्र ,उत्तरा के गर्भ की तरफ मोड़ दिया । इस नीच कृत्य से कुपित श्री कृष्ण ने अश्वस्थामा को शाप दिया नीच अश्वस्थामा , तुम्हारे सर माथे पर जो मणि है , वहां  घाव होगा जो दुखता -रिसता व महकता रहेगा और तू ये पीड़ा लेकर चिरकाल तक भटकता रहेगा ॥ 
उस मणि को पांडवो ने लेकर उसे गुरुपुत्र होने की वजह से क्षमादान दे दिया ॥ 
उस मणि की विशेषता यह थी , कि जो उसे भूत -प्रेतो से राक्षसों से जहरीले जीव- जंतु से खतरनाक जानवरो से भूख -प्यास  व कमजोरी से उसकी रक्षा करती थी ॥ जिसे कृष्ण ने उसे उस मणि के अयोग्य करार देकर उसे पांडवो को लेने को कहा जिसे पांडवो ने ले लिया ॥ 
कहा जाता है , बिना मणि के सिर पर घाव लिए अश्वस्थामा , मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के पास गुप्तेश्वर महादेव जो आज जर्जर हो चुके असीरगढ़ किले में शिवमंदिर में अश्वस्थामा आज भी आमावस्या व पूर्णिमा पर आता व शिवलिंग पर पुष्प अर्पित करता है , जो वहां मिलते है , ऐसा गाँव वालो का कहना है ।। 
वहा के पुजारी के अनुसार अश्वस्थामा के आने जाने के बाद वहा का वातावरण दुर्गन्धमय हो जाता है ॥ 
समय -समय पर कई लोगो ने दावा किया की अश्वस्थामा उनसे मिला । किसी ने कहा अश्वस्थामा ने अपने सर की चोट हेतु हल्दी तेल माँगा , तो किसी ने कहा उसने अपने चोट हेतु मक्खन माँगा ।  तो किसी ने कहा उसने भूख से व्याकुल दूकानदार से  पूड़ी कचौड़ी मांगी आदि -आदि ॥ 
कहा जाता है , अश्वस्थामा  से जानबूझकर मिलना देखना हितकर नहीं है , लोग डरकर मनोरोगी हो जाते है ॥ 
असीरगढ़ के आलावा अश्वस्थामा मध्यप्रदेश के ही जबल पुर के गौरीघाट नर्मदा नदी व जलाशय के क्षेत्र में भी भटकता है । उसे इस क्षेत्र में किसी का आना पसंद नहीं है । कई लोगो ने पीछे से धक्का देने की बात भी कही है ॥ इसके अलावा अश्वस्थामा को हरियाणा के कुरुक्षेत्र व अन्य तीर्थो पर भी भटकने की बात कही जाती है ॥।
॥ नोट ;-अब मैं अपने एक अन्य ब्लॉग पर लिख रहा हु जो है ;- againindian.blogspot.com (अगेन इंडियन.ब्लागस्पाट.कॉम ) जहा INDIAN the kent पेज खुलकर आएगा  ॥ http://againindian.blogspot.in/

लेखक;- धर्मग्रंथो से ......... रविकान्त यादव 





































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