राम नवमी भगवान मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम का जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है ,मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम का दुसरा जन्म अपने प्रिय भाई लक्ष्मण को मेघनाद की शक्ति लगने के बाद संजीवनी बूटी द्वारा प्राण रक्षा के बाद हुआ ,आइये जानते है ,संजीवनी बूटी को ,क्या आज त्रेतायुग की वह संजीवनी बूटी है की नहीं ,यदि है, तो मिलेगी की नहीं जब लुप्त सरस्वती नदी को विज्ञानं के जरिये उसके चिन्ह देखे जा सकते है ,वही लंका पर करामाती नल -नील बानर का पत्थर का सेतु आज भी है ,नल -नील को शाप था वो जिस भी वस्तु को पानी में फेंकेगे वो डूबेगी नहीं ये बानरी सेना में थे ,तो फिर संजीवनी बूटी भी होगी ही ,
सुशेन वैध ने लक्ष्मण प्राण रक्षा के लिए हनुमान जी से संजीवनी लाने को कहा था ,यह भी बताया की लक्ष्मण के शरीर को विष और कोमा को केवल संजीवनी बूटी या विशैल कर्णी वनस्पति से ही वापस वापस जिंदा किया जा सकता है ,केवल यही बूटी उनके दुःख को हरण कर सकती है ,तथा सूर्योदय से पहले हिमालय से लाना होगा ,तो तर्क यह है की संजीवनी बूटी है कहा, और कब मिल सकती है ,यहाँ हम जान ले की संजीवनी एक प्रकार की एंटी biotic दवा के सामान थी ,या उससे बढ़कर ,किसी भी चोट को कम समय में ठीक करना ही नहीं ,अच्छा स्वास्थ्य देना ,तथा प्रतिरक्षा करना ही इसका गुण था या है ,|
तो क्या आज यह नहीं मिल सकती ,क्यों नहीं यदि इन नियमो को गौर करे खोजे तो संजीवनी हिमालय पर सूर्यास्त बाद ,ओस युक्त चमकते पुष्प ,चांदनी रात में खिलने वाली हो सकती है ,हिमालय एक बड़ा पर्वतीय क्षेत्र है अतः यह हिमालय के उप सहयोगी पर्वत गंधमादन और द्रोणागिरी पर मिलती है ,या मिल सकती है ,संजीवनी चूँकि एक राहत देने वाली बूटी है ,अतः इसका वातावरण भी शायद सेव के बगीचे जैसा वातावरण ,
हो ,तथा यह जल के सरोवर के आस पास सुरम्य वातावरण जीव -जंतु और अन्य वनस्पतियों के साथ उत्पन्न होती हो ,चूँकि यह एक अमर और सच्ची कहानी का अंग है अतः यह मिथ्या तो नहीं हो सकती ....
हां समय के साथ के साथ यह ज़रूर प्रभावित हुई हो ,स्थान बदला हो ,या विलुप्त भी हो गयी हो ,इसका कारण उजड़ते बन और हरियाली हो ,या यह जहा भी उगती हो इसका मानव जीवन के हाथ लगना आयुर्वेद में देव धनवंतरी के अमृत कलश सामान उपलब्धि होगी ,||
लगभग अधिकतर सफ़ेद फूल जैसे बेला ,जूही ,चम्पक ,मालती ,पारिजात ,रातरानी , चांदनी में ही खिलते है ,और अपनी खुशबू भी बिखेरते है ,मूल्यवान चन्दन पर पुष्प नहीं खिलते या नहीं दीखते पर कही कही प्राचीन ग्रन्थ में कवियों ने पुष्पित होने का जिक्र किया है , चन्दन और चांदनी की शीतलता मानव के लिए वरदान ही है ,|
पर हमें जरूरत है ,उस संजीवनी के फूल की ,पौधे की अच्छे मानव ,और जीव -जंतुवो के हित के लिए ,मानवता की भलाई के लिए ,|
आज कुछ आयुर्वेदिक कम होती विलुप्त होती वनस्पतियों के नाम है ,जैसे -सतावर ,कंदमूल गेठी ,नाका,गुरूच ,मुलेठी ,खेखसा ,गोजिला ,नागरमोथा ,हडजोड ,गिलोय ,हर्रा ,बहेड़ा ,लाह ,चिरौंजी ,निषोध, आदि -आदि ,
प्रकिति के विलुप्त होने में हम मानवों की अंधी दौड़ और निहायत मानव स्वार्थ ही है ,जरुरत है इन्हें बचाने की |
जाते -जाते .एक रहीम जी का दोहा याद आ गया ...
तरुवर फल नहीं खात है ,सरोवर पियत न नीर ..
लोक(पर ) काज परमार्थ से मानव धरा शरीर ...
लेखक ;- मानव हित के लिए ... वही ...रविकांत यादव
एम् .कॉम २०१०
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