Wednesday, August 3, 2011

रक्षक साँप



नाग पंचमी हिन्दू धर्म में नागपूजा का पर्व है ,हिंदु इन्हें नाग देवता कहते है ,|
जो उन्हें खुश रखने और कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है| ,हिन्दू धर्म में प्रमुख १२ नाग है ,अनंत, बासुकी ,शंख, पदम, कम्बल, कर्कोटक, अश्वतर ,घृतरास्ट्र,शंखपाल ,कालिया, तक्षक, पिंगल, |
भगवान् शिव जी का हार भी नाग है ,जो उनका भय मुक्ति का सन्देश देता है ,शेषनाग नागो में सर्वोपरी है |,नागो की माता मन्सादेवी(कद्रू ) है,| सावन में शिवपूजा का विशेष महत्व है ,इसी महीने में साँप भी ज्यादा दीखते है ,और उनकी पूजा का पर्व नागपंचमी पड़ता है ,| 


महाभारत में भी नागो का कई जिक्र है , एक महाभारत कथा में जब बालक भीम को दुर्योधन  (शकुनी चाल ) से धोखे से  खीर में महाभयानक विष देकर गंगा में फ़ेंक देता है ,उस विष की काट केवल नागो के पास थी  ,भीम बहते बहते नाग लोक में चले जाते है ,तब नाग देखते ही उन्हें काट लेते है ,वह मरने की वजाय जिन्दा हो जाते है ,और उनसे लड़ने लगते है , नाग उन्हें पकड़ कर नाग राजा वासुकी के पास ले जाते है ,|कहते है , हे नाग राज यह कोई साधारण बालक नहीं  जान पड़ता ,| तब नागराज उनसे पूछते  है , हे बालक तुम कौन हो ,भीम कहते है, मै,कुंती पुत्र भीम हु ,तब नाग राज बासुकी कहते है ,तुम अपने नाना के घर आ गए हो  जिस प्रकार भीष्म तुम्हारे पितामह हुए , उसी तरह मै तुम्हारा नाना लगुगा, कुंती मेरी पुत्री की पुत्री है ,| तब नाग राज ने भीम को आशीर्वाद  स्वरुप कटोरे में सुधारस दिया ,जिसके एक कटोरे में १००० हाथियों का बल था ,भीम ने ८ कटोरे सुधा रस (खीर) पीये और ८००० हाथियों का बल प्राप्त किया ,आठ दिन सोने के बाद भीम को सही सलामत धरती सतह पर भेज दिया गया ,|

अब मेरी लिखी कहानी एक राजा अपने अकूत धन सोने -हीरे मोती को अपने गुप्त स्थान पर कलश में भर कर छिपाकर रखता है ,अकूत धन को वह सुरक्षित स्थान पर  दबा देता है , उसे सदैव अपने धन की हिफाजत और चिंता रहती ,वह उसे बहुत ख्याल से रखता पर एक दिन उसकी मृत्यु हो जाती है ,धन से लगाव और धन की रक्षा की तीव्र इच्छा से तथा परोपकार में में न व्यय करना ,इससे वह साँप बनकर जन्म लेकर रक्षा करता है ,|
और प्रतिदिन शिव मंदिर पर गाहे बजाहे जरुर दिख जाता , एक बार  खोजी जानकार लोगो की नजर  उस साँप पर पड़ती है | वे समझ जाते है ,ये साँप जरुर कोई मकसद से घूमता है ,वे उसपर नजर रखते है तथा पूर्णिमा के दिन ५-६ लोगो का समूह एक जगह गड़े धन के लिए खुदाई करते है , तभी उन्हें वही साँप पुनः दिख जाता है ,वो उसे मारने की इच्छा करते है ,तभी वह अजीब ध्वनि करता है ,और कई दर्जनों साँप आ जाते है , वो सभी भाग जाते है ,पर धीरे -धीरे उन ६ वो की अलग -अलग जगह साँप के डसने से मृत्यु हो जाती है , तब से लेकर कोई उस खजाने के चक्कर में नहीं पड़ा ,|





वह साँप प्रतिदिन शिवभक्ति करता ,७०० साल तक ,एक दिन शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न होते है ,|तथा उसकी समस्या कारन पूछते है ,सर्प बना राजा अपनी समस्या कहता है ,हे देवाधिदेव मेरी समस्या ये मेरा धन है ,मै इसे परोपकार में तथा अच्छे कार्य -व्यक्ति पर खर्च नहीं कर सका इसलिए सर्प बना घूम रहा हु , अतः आप मुझे उचित और अच्छा व्यक्ति दे ,जो इसे परोपकार में में व्यय कर सके तभी मुझे मुक्ति मिलेगी ,शिव जी उसे आश्वासन देते है ,सर्प बना राजा मुक्ति मोक्ष प्राप्त करता है ,|


शिव जी अपने ५ योग्य भक्तो को , एक निर्धन पर सच्चा  , एक समर्पित शिक्षक , एक समाजसेवक , एक धनी पर परम भक्त , और एक गृहणी को सपने में परोपकार राह पर चलते हुए कल्याण मार्ग पर लगाने को कह , धन उनके घर भेज देते है , और सर्प बने राजा को मुक्ति और मोक्ष मिल जाता है ,|(संगीत below)

लेखक ;- धार्मिक ....रविकांत यादव 




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