Wednesday, April 6, 2011

योगमाया








नव देवियों का नवरात्र पर्व प्रारंभ हो चुका है ,ये नव रूप माँ दुर्गा के ही प्रतीक है ,हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०६८ भी आगाज़ कर चुका है ,किसानो के खेतो की फसले पक कर किसानो के घरो के धन ,वैभव ,सम्ब्रिधी को बढ़ा रही है ,जामुन के पेंड़ो पर खूबसूरत फूल ,नीम के पेंड़ो पर मनोहारी फूल ,नीम मंजरी आ चुकी है ,बसंत पंचमी के आम के बौर की खुशबू अब टिकोरो में परिवर्तित हो चुके है ,सनातन धर्मी हिन्दुओ के घरो में नीम के पत्तो फूल , आम के पत्तो ,जटा नारियल ,घी के दीये ,कुमकुम ,कलश आदि की स्थापना का नौ दिवसीय
 पर्व चल रहा है ,नवरात्र और दुर्गा पूजा वर्ष में  दो बार सृष्टी संचालिका सभी शक्तियो से ऊपर माँ दुर्गा का ही पर्व है ,चारो तरफ घी दशांग की खुशबू दिव्य वातावरण का निर्माण कर रही है ,गर्मी का भी आगाज़ हो चुका है ,फलदार पेंड -पौधे रंग बिरंगे फूलो का गहना पहन चुके है , ऐसे में हमारा कर्तब्य बनता है ,हम अपने प्रकृति वातावरण की रक्षा करे ,तभी हम सुरक्षित रह सकेगे ,हम प्रकृति की रक्षा करे ,तभी प्रकृति अपने प्रकोप से हमारी रक्षा करेगी ,|

























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पृथ्वी को मृत्यु लोक भी कहते है ,यहाँ पर जन्मा हर प्राणी मृत्यु प्रिया है ,मृत्यु देवता भेदभाव रहित अपने यमपाश में जकड कर सभी आत्मावो को ले जाते  है ,परन्तु उनके भी कुछ नियम व सिद्धांत है ,चाहे वह नचिकेता हो सावित्री पति सत्यवान हो या मार्कंडेय अपने सिद्धांत और सीमा से परे प्राण हरण नहीं कर सकते |, जैसा की फिल्म ghost rider में बताया गया है बुरी आत्माए भी अपने ज्ञान और प्रभाव से नर्क से निकल भागती है ,ठीक आज के जेल की तरह प्रभावी अपने शक्ति रुवाब से जेल में भी आनंद लेते है ,और चालाकी से भाग भी जाते है ,जैसा की फिल्म में बताया गया है ,दिखाया गया है ,बुरी आत्माए नर्क से भागती है तो अपना प्रकोप फैलती है ,तो उस प्रकोप से बचने के लिए हम उनकी शर्ते मान  कर हम  शक्ति प्रदान कर त्रिसंकु की तरह अधिकार दे देते है ,


आईये बात करते है योगमाया की ,योगमाया प्राणियों को गढ़ने का कार्य करती है ,एक बार एक मूर्तिकार को अपने मृत्यु का भान होता है ,वह मरना नहीं चाहता है ,तो उसने अपने जैसे ही मूर्तियों की रचना कर उनके बीच रहने लगा ,मूर्ति भी ऐसी मानो  बोल पड़ेगी एकदम सजीव ,यमदूत आते है ,तो वहा का दृश्य देखकर चक्कर में पड जाते है ,एक व्यक्ति का प्राण लेना है ,ये तो कई है ,वो भी हुबहू एक ही प्रकार के कही गलती में दुसरे का प्राण न ले ले इसलिए यमदूत चले जाते है ,तब यमराज अपने चालाक यम  दूत को भेजते है ,वह वह जाता है ,वही स्थिति वह भी चक्कर में पड़ता है ,फिर सोच कर बोलता है ,यह सभी मूर्ति तो महानता की प्रतीक है ,पर एक चूक हो गयी है,मूर्तिकार से ,| तभी मूर्तिकार बोलता है कहा और इस तरह वह पकड़ में आ जाता है ,क्यों की वह प्रशंसा का भूखा और थोडा घमंडी भी रहता है ,|
आत्मावो से ही देव शक्तिया बढती है ,आत्मा स्वतंत्र  होती है ,शरिर मिलने पर कर्तव्य मिलता है ,|
एक बार योगमाया जिसका कार्य आत्मावो को रूप शरिर प्रदान करना होता है ,वह अपना कार्य करने से मना कर देती है ,उसका कहना था इतने बड़े मृत्यु लोक में मै रूप शरिर का ढांचा डिज़ा इन नहीं बना उगी कोई दूसरा खोज लो यह खबर यमलोक से होती हुई ,ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश ,अन्य लोको तक पहुच गयी चारो तरफ हाहाकार मच गयी ,धरती ही तो देवतावो, दानवों के कमाई का साधन है ,यही से उनका खर्चा चलता है और शक्ति सुविधा मिलती है ,मानव रूप नहीं होगा नहीं जन्मेगे तो क्या हवा से शुन्य  से ताकत पुण्य आदि लेगे? ,जो दिखती ही नहीं है ,चारो  तरफ हाहाकार ,मच जाता है ,


सभी देव, दानव, देविया ,यक्ष ,गन्धर्व ,योगमाया की स्तुति करने लगते है ,तब योग माया ने अपनी शिकायत कही कि प्रत्येक लोग अपने कार्य से अवकाश लेते है ,अवकाश रखते है तो फिर मै क्यों नहीं ,मै दिन रात अपने कार्य में लगी रहती हु ,मेरे लिए भी अवकाश निर्धारित हो ,मेरा कार्य भी अत्यंत कठिन है ,मै एक जैसे दो व्यक्ति नहीं बनाती, तब देवो ने जो यमराज और ब्रह्मा जी के साथ थे ,ब्रह्मा जी को सुझाव्  माँगा तब सभी  देवो ने कहा देवी आप एक ही प्रकार के ६ व्यक्ति बना सकती है ,पर आप उनकी फ़िक्र न करे उनका रहन सहन वेश -भूषा भाषा स्थान अलग -अलग होगा और जो समय बचेगा वही आपका अवकाश होगा ,इस प्रकार योगदेवी अपने कार्य से बचने वाले समय से अवकाश प्राप्त कर पुनः अपने कार्य पर लौट आती है ,और इस तरह पृथ्वी के आश्रित देव ,दानव ,यक्ष ,गन्धर्व , आदि रहत कि सांस लेते है ,.....इस तरह मानव शरिर मिलता है , पर उनके अच्छे बुरे कर्म उन्ही का ही नहीं पुरे सृष्टी को  कही न कही किसी न किसी रूप में प्रभावित करते है ...|
लेखक ;- सशरीर 
रविकान्त यादव .. एम् .कॉम .२०१० 



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