शिव हिंदु धर्म में संहारक शक्ति है ,ये भोले नाथ भी है ,आगे कहानी में ,संसार के दुखो का अनुभव ,पालन महसूस करने के लिए इन्होने सागर मंथन का हलाहल विष ही पान कर लिया ,जिससे इनका एक नाम नीलकंठ भी है ,विष से इनका गला नीला हो गया ,चूँकि गलत कार्य करने का दिल ही नहीं है ,फिर भी नशे में धुत ,गलत और बहिस्कार लोगो के साथी बन जाते है ,जिसे कोई नहीं अपनाता उसे ये तारते है ,शांति और साथ देते है ,भूत प्रेत ,गोजर बिच्छु साँप तक इनके साथी है ,काल के भी काल है ,मृत्यु भी इनसे डरती है ,इसलिए इन्हें महाकाल भी कहा जाता है ,
ये सायद पहले और आखिरी देव है ,जो दिमाग से नहीं दिल से चलते है ,
इन्हें किसी का डर नहीं ,सभी पर भरोसा रखते है ,इसीलिए भस्मासुर तक को वर प्रदान कर देते है ,
पाप बढ़ने पर अपने तांडव से सृस्तिनास से न्याय करने वाले ,जग कल्याण के लिए गंगा को धारण किये हुए है ,
संपर्क अनुसार आतंरिक गर्मी से चंद्रदेव शीतलता प्रदान करते है ,ये अपने ही लोगो के दिए तपन दुःख दर्द आदि के तपन से गर्मी से परेसान रहते है ,इसलिए इन्हें शीतलता अति प्रिय है ,
इन्हें जल मात्र से ही प्रसन्न किया जा सकता है ,
इनकी आतंरिक गर्मी उस्मा,क्रोध के रूप में तीसरे नेत्र द्वारा अग्नि से कोई नहीं बच सकता ,इनका अस्त्र और शस्त्र त्रिसुल है ,वाहन इनके परम साथी नंदी है ,
गंगा और चन्द्रमा धारण करने का एक उद्देश्य यह भी है ,की इनको शीतलता मिले ,संसार में परिवार कुटुंब दुनियादारी के देवता है ,देवता तो देवता दैत्य भी बड़े प्रेम से इन्हें पूजते है ,
एक बार एक चोर जो की उसका अपना नियम वसूल था ,इधर उधर छोटी मोटी चोरिया करता था , एक बार चोरी को कुछ न मिला तो ,चोरी की इच्छा से शिव मंदिर गया ,इधर उधर नजर दौड़ाया कुछ नहीं मिला तो उसकी नजर मंदिर के शिवलिंग के ऊपर बंधे पीतल के घंटे पर गयी उसको वह चोरी करना चाहता था ,पर वहा तक न पहुच पाया ,तो शिवलिंग पर पैर रखकर उसे उतारने लगा इतने में शिव प्रकट हो जाते है ,वो कहते है ,आज तक मानव तरह तरह से उन्हें प्रसन्न करते थे ,पर यह कैसा मानव है ,जो स्वयं को ही उन्हें अर्पित कर रहा है ,चोर शिव भोले के चरणों में गिर पड़ता है ,और भोले शिव उसे धनवान और कल्याण होने का वरदान प्राप्त करते है ,तथा उस चोर को परलोक भी शिवधाम मिलता है ,
सच्चे सदाचारी और कर्तब्यई गृहस्तो पर इनकी कृपा रहती है ,सच्चे गृहस्तो सभी को उनका अधिकार देने वाले शिव को शक्ति देते है ,शिव इनको प्रेम करते है ,और इन्हें कृपा प्रदान करते है ,
वही अनजान शिकारी को कुछ ज्ञान नहीं रहता है ,अनजाने भूखे रहने , और आराधना होने से उसे कृपा प्राप्त करते है ,ये दिन शिव रात्रि का दिन ही था ,इसलिए शिव भोले नाथ है ,इनकी शक्तिया विखंडित होती रहती है ,जिससे परिणाम स्वरुप अन्य शिव तुल्य शक्तिया जन्म लेती है ,
ये वही शिव है ,जो मार्कंडेय के श्राप को टालते ही नहीं अक्षय जीवन का वर भी देते है ,इस पर एक पूरा का पूरा पुराण भी है ,आप मार्कंडेय महादेव गाजीपुर के कैथी गंगा और गोमती के संगम पर जाकर दर्सन कर सकते है ,
मार्कंडेय ज्ञान से पूर्ण जीवन प्राप्त करते है ,क्यों की काल के आने पर दुनियादारी के देव को मोह का भान करने के लिए वे शिव लिंग से लिपट जाते है ,और मोह मयी शिव प्राण रक्षा कर उनको पूर्ण अमर जीवन प्रदान करते है ,आप शिव से सम्बंधित सारी जानकारी शिव पुराण से प्राप्त कर सकते है ,शायद मेरे लिखे हुए को छोड़कर ,
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महा शिव रात्रि तो हम सभी जानते है ,कि ये शिव जी को प्रसन्न करने का का पर्व है ,पर इसके पीछे एक कथा यह है ,कि एक बार एक शिकारी जगल में अपने परिवार के लिए शिकार करने गया ,पर उसे रात्रि तक कोई शिकार न मिला तो ,प्राण रक्षा के लिए वह एक बेल के पेड़ पर रात गुजारने का निर्णय करता है ,तथा पेड़ पर ही वह अपने परिवार के याद में रोता और पत्ते तोड़ कर फेंकता जाता ,इस बात से अनजान उसके आंसू और पत्ते नीचे पत्तियों के बीच छिपे शिवलिंग पर गिरते जाते ,तभी शिव भोले भंडारी प्रसन्न होकर प्रकट होकर उस अनजाने शिकारी का कल्याण करते है ,
शिव ही एकमात्र देवता है जो कारण नहीं देखते ,दुनिया दारी के देवता शिव , दुनिया चलाने वाले शिव भक्ति में स्वयं अज्ञानी बन जाते है ,चाहे भस्मासुर हो या हलाहल विष ,इसलिए शिव ही भोलेनाथ है ,
एक बार अपने पुत्र गणेश जी को अत्यधिक मीठे मोदक खाने से मधुमेय रोग हो गया तो उन्होंने उन्हें ,जामुन के जंगलो में जाकर तपस्या करने को कहा ,वहा रहकर श्री गणेश जी जामुन के फल और वातावरण से मधुमेय रोग से पूर्ण मुक्त जो जाते है ,
शिव जी बोलते है ",मै सभी प्राणियों में सभी आत्मायो के पवित्र भावनावो में हु ,
इसलिए शिव हु ",
"मै अपने भक्तो को जमीन पर रेंगकर चलने वाले नाग के रूप में दूत के रूप में दर्शन देता हु ,मेरे फन पर उस वक्त त्रिशुल बना रहता हु ,उस वक्त जमीन पर रहने के कारण बुरे लोगो के लिए रूद्र हु , एक रूप नीलकंठ पक्षी के रूप में अपने प्रिय भक्तो को दर्शन देता हु ,उस वक्त मै आसमान पर होता हु,उचाई पर ,इसलिए बड़े उदार भाव रखता हु ,नम्रता रखता हु ,अपने भक्तो को बड़े प्रिय भाव रखता हु ,मेरे गले पर नीला चिन्ह बना रहता है ,इन दौरान बुरे पथ पर अपने भक्तो को जाने से रोकने का रुकने का ज्ञान बोध भी देता हु,
बासुदेव केवल मेरा यही दो रूप है ,"
"मै तुम्हारे चालो में नहीं फंसुगा ,हां तुम सही सोच रहे हो ,मै तुम्हारा बाबा जरूर बन सकता हु ,मै सभी का हु उन्ही के रूपों में तुम मुझे दुनियादारी का देवता कह सकते हो , "
लेखक ;-शिव भक्त
रविकान्त यादव
२-३-2011
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VERY VERY KNOWLEDGEFULL AND ATTRACTIVE
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