Monday, December 19, 2011

दुश्मनी

बिरजु, और सरजू पहलवान गाँव  में पडोसी थे , सरजू मन ही मन बिरजु से चिढ़ता था , जलता था , बिरजू जनता था ,सरजू उसका हितैसी नहीं है,| फिर भी वह उसे दुश्मन नहीं मानता था| ,सरजू बिरजू को परेशान करने ,लज्जित करने के नित नये -नये हथकंडे अपनाता रहता , कभी जानवरों को लेकर की तेरे जानवर मेरे खेत में घुसे , तो कभी बच्चो को लेकर , सरजू , बिरजू को गाली-गलौज से लेकर मार पीट पर उतर आता ,|
एक दिन , बिरजू को खबर मिली की ,उसके गेहू के ,तैयार फसल में ,आग लग गयी है , बेतहासा भागे -भागे वह फसल देखने गया तब तक उसके आँखों के सामने उसकी सारी  मेहनत की फसल जल गयी , |
उसे लगा यह काम जरूर सरजू का ही होगा ,वह सरजू के घर गया तो देखा ,वह मुस्कुरा कर सिगरेट पी रहा था , |
समय गुजरता गया एक दिन सरजू का बेटा , नीम के पेंड पर से दातुन तोड़ते समय गिर पड़ा , उसके हाथ- पैर 
टूट जाते है , वह मरणासन्न हो गया , सरजू बेतहासा दौड़ -दौड़ कर गाँव से मदद मांगता , गाडी -धोड़े वालो से वाहन मांगता पर उसके पहलवानी स्वाभाव के कारण सभी ने बहाना बना दिया , किसी ने उसकी मदद नहीं की , वह रोता , अपने भाग्य को कोसता , तभी सामने से उसे बिरजू की तरह कोई आते दिखा थोडा पास आया तो वह बिरजू ही था , उसे अपने आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था , |
तब बिरजू ने कहा एक पडोसी होने की वजह से अपनी गाडी से तुम्हारी सहायता का अधिकार तो बनता ही है ,|
सरजू फूट -फूट कर बिलखने लगता है , और बिरजू के पैरो में गिर पड़ता है , |

जाते -जाते यही कि,  मित्र , यदि मित्र के मित्र से मिले तो ठीक ,वरना मित्र , मित्र के दुश्मन से मिले तो सब कुछ गलत होता है , |
लेखक ;- सहायक ...रविकांत यादव (m .com .२०१०)




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