Thursday, February 11, 2016

गंगा बचाओ (save our river )

गोमुख गंगोत्री  से उतपन्न पौराणिक नदी गंगा का जल चमत्कारिक है , । तारने  वाला है ,परन्तु वर्तमान में यह कई जगह नहाने के लायक भी नहीं है , यह  गंगा हमारी राष्ट्रीय नदी घोषित है । जरुरत है, इसे साफ़ और शुद्ध रखने की सरकारी आंकड़ों में 2012 तक 39000 करोड़ वही times of india के अनुसार 28 साल में 20000 करोड़ रूपये या इससे ज्यादा खर्च हो चुके है , 5 राज्यों से गुजरने वाली गंगा क्या साफ़ हुई है ?  जबाब है , नहीं ।  मेहनत  का पैसा पानी में ? पर पानी साफ़ नहीं हुआ । 

जरुरत है , एक संगठन बने गंगा सेवा समिति जो लोगो को जागरूक करे , लोग गंगा के पास आते तो धरम करम से है , सारे अच्छी चीज़ तो लेते जायेगे और सारे शव, सड़े -गले माला फूल , बोतल, डिब्बा, टूटी फूटी मुर्तिया , छिलके , प्लास्टिक थैलीया , व उसमे रखे सामान , फटे कपडे और न जाने क्या क्या ? गंगा में फेक चले जाते है ,। ये भक्ति है या स्वार्थ या कम  से कम कोम्प्रोमाईज़  मैंने एक अंग्रेज को देखा जो गंगा श्रद्धालु था , दीप दान कर रहा था , मानो कह रहा हो  save your river ........... 
यहाँ हमें लंदन के टेम्स नदी से सीखना होगा जिसका जल पहले महकता था, परन्तु आज वह विश्व की सबसे साफ़ नदी है । 
असि नदी जिसका शाब्दिक अर्थ तलवार होता है , जिससे वाराणसी नाम बना है , जो मेरे घर से कुछ दुरी पर है , कभी इसका जल साफ़ हुआ करता था , कारण कभी इधर जंगल हुआ करते थे , जो वर्षा के जल को कुछ पेंड पौधे जैसे guadua  बाँस  ,की किस्म और कैक्टस इनमे केवल बांस मात्र 1 हैक्टेयर में 30 हज़ार लीटर से भी ज्यादा जल को स्टोर व संरक्षित करते थे , जिससे कई जगह से एक साथ मिलकर साल भर गुणकारी जल बहता रहता था ।  परन्तु आज न वह जंगल है , न  वह नदी , जो नदी थी , उसकी जगह वह, खतरनाक नाले में तब्दील हो चुकी है , और जो जंगल थे उनकी जगह हर तरफ मकान बन चुके है ।
 एक न्यूज़ पेपर जरिये से बनारस में प्रतिदिन 400 टन  कूड़ा निकलता है , इनमे 80 टन प्लास्टिक निकलता है , परन्तु कूड़े से सड़क बनाना  , बिजली बनाना व उर्वरक बनाने की बाते  अभी तक हवाई है , जहा यह फेका जाता है , यदि जल में मिले तो उसे जहरीला तथा भूमिगत जल को भी विषैला बना सकता है ,। यही कारण  है ,कि हाल ही में तमिलनाडु में समुद्र के किनारे 250 (ढाई सौ ) व्हेल मछलिया आ गयी मानवो के लाख बचाने पर भी 70 मारी गयी । अन्य स्रोतों से १०० आई ४५ मारी गयी ।
 जरुरत है , गंगा को ही साफ़  न रखे  वरन  बल्कि उसमे मिलने वाली अन्य नदियों व चार प्रमुख नदियों को भी बचाये अन्य 14 नदिया जो लगभग नाले में बदल गयी है । 

जरुरत है , मूर्ति बहाने का एक अलग जालियों युक्त स्थान बने जिसमें  में से  उनके अवशेष  बाद में निकल लिए जाये । इसी तरह इसी तरह पूजा पाठ  मनौती का भी अलग अलग स्थान बने । नालो का सोधन हो । 
गंगा के भक्तो को गंगा के लिए पूजा- पाठ मनौती आदि के लिए दान रूप में टैक्स निर्धारण हो सकता है । 
कल कारखानो का जल शोधन के साथ ही गंगा में गिर रहे रसायन जल शोधन  हो , भले ही इसके लिए सरकार कारखानो को टैक्स लेने के अधीन ले अगर कारखाने अपने दूषित जल के बदले टैक्स न दे तो वो अपना दुसित जल अपने पास रख सकते है , गंगा में मछली , मगर, कछुए , मारने पर हर जगह रोक लगे इसे अपराध घोसित करे । 
मैंने खुले नालो के शोधन हेतु दो मॉडल सोच  रखे है , जिससे कई तमाम फायदे भी होगे , । गंगा को लेकर सार्थकता और निरर्थकता में  जमीन - आसमान का अंतर है । जनता से गंगा के सारे कर्म पैसे किसी गंगा सेवा समिति या विभाग को मिले जिससे वह गंगा के हित  के लिए जिम्मेदार हो । 

गंगा को साफ़ रखना ही  है, ये हमारी आस्था का अटूट अंग है , इसके लिए भले ही हमें साम -दाम -दंड- भेद की नीति  या येन केन प्रकारेण की नीति पर चलना पड़े  , क्यों की कार्य न होने पर आसान कार्य भी कठिन हो जाते है । 

लेखक;- आचमन के साथ ...... रविकान्त  यादव join me;- facebook.com/ravikantyadava 










No comments:

Post a Comment