Monday, April 4, 2016

ब्रह्मांड (cosmic)

आकाश के तारे खोजने और गिनने बैठो तो धरती पर रेत के कण भी कम पड जाये ,। 
ये तो केवल हमारी आकाश गंगा का हाल है , आकाश गंगा का अर्थ ब्रह्माण्ड में तमाम असंख्य चाँद, तारे (सूर्य) ग्रह , उपग्रह , सुपरनोवा , पुच्छल तारे , ब्लैक होल या दुनिया होता है । 
इनमे ब्लैक होल का रहस्य इसकी ग्रेविटी है , जिससे एक नारंगी का वजन पुरे माउंट एवेरेस्ट के बराबर होता है । इसी तरह असंख्य आकाश गंगाए (galaxy )और भी है । 
इनमे कई तारो का प्रकाश हम तक आने में लाखो करोडो साल लग जाते है । याद रहे प्रकाश की गति से बढ़कर अभी तक कुछ नहीं है , । अर्थात प्रकाश की गति सबसे तेज होती है , जिसकी स्पीड या गति  299792458 metres मीटर per second है ॥ 

और मानव की औसत आयु वेदो में 100 साल ही आंकी गयी है । यानि अगर हमारे दादा के दादा कोई सन्देश अन्य ग्रह पर भेजे होगे तो वह हमें आज मिलना संभव हो सकता है । 

अभी तक ब्रह्माण्ड का कोई ओर -छोर  नहीं है , अनन्त है , और यह बढ़ता ही जा रहा है , विस्तारित होता जा रहा है , फिर भी अभी तक पृथ्वी (earth ) या धरती को छोड़ अन्य कही जीवन तक नहीं खोजा गया है ,या नहीं खोज जा सका है  , सभ्यता की तो बात ही छोड़ दीजिये । 

ब्रह्माण्ड में पृथ्वी की स्थिति रेत के कण जैसी ही है , । अगर ब्रह्माण्ड का कोई ओर -छोर  है , तो आगे क्या है ???यह  कौतुक पूर्ण है । 

 हिन्दु धर्म ग्रंथो में एक  कहानी आती है । तीन प्रमुख देवो में से  दो ब्रह्मा  व विष्णु को अहंकार हो जाता है ,कि मैं ही श्रेष्ठ  हु , दोनों शिव के पास जाते है , व निर्णय सुनाने को कहते है ,।
तो शिव जी उन्हें एक स्थान पर जाकर दोनों को ओर -छोर पता लगाने को कहते है , । दोनों अपना -अपना दिशा उचाई और नीचाई तय कर  आदि -अंत पता करने चल पड़ते है , कितने ही वर्ष बीत जाते है ,परन्तु उन्हें ओर -छोर का दूर दूर तक पता ही नहीं चलता है ,ब्रह्मा , विष्णु समझ जाते है , ओर -छोर पता लगाना असम्भव है ।  ऐसे में ब्रह्मा को एक केतकी का पुष्प मिलती  है , ब्रह्मा उससे आदि -अंत के बारे में पूछते है , तो वह बताती है , की कई युगों से वह स्वयं ओर छोर तय नहीं कर पा रही है ।

ब्रह्मा -विष्णु दोनों लज्जित वापस शिव जी के पास आ जाते है । वर्तमान समय में केतकी का फूल ही नासा द्वारा छोड़ा गया satelite  (उपग्रह ) है , जो चलता जा रहा है । वही हमारे धर्म में शिव को महाकाल कहा गया है , इसका   आशय  जो काल , समय से परे है , अजेय -अमर है । 
यह कहानी ब्रह्माण्ड के ओर -छोर की तरफ ही इंगित करती है , । जब प्रमुख देवता तक ब्रह्माण्ड का आदि-अंत तक नहीं जानते तो वह कौन है ? जो ब्रह्मांड बनाता व जानता है । फिलहाल हम मानवों का विज्ञान देवताओ की तुलना में बहुत तुच्छ है । 

लेखक;- समय  के यात्री.... रविकान्त यादव join me ;-facebook.com/ravikantyadava 














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