Saturday, March 19, 2011

"मै" ....... की होली


















द्वापर युग की यह कहानी होली पर्व का दूसरा प्रसंग भी है ,
युद्ध समाप्त हो चुके थे ,पांडव राज भोग रहे थे ,एक दिन अर्जुन श्री कृष्ण के पास आते है ,उन्हें शांति चाहिए थी ,कृष्ण अर्जुन के अन्दर बाहुबल के हनक को समझ गये,उन्होंने कहा हे सखा तुम्हे सप्तम ऋषि के स्थान जाना होगा ,तथा वही तुम्हे कुछ राह दिखा सकते है ,|
गांडीव श्रेष्ठ अर्जुन सप्तम ऋषि के स्थान जाते है ,| वहा का नज़ारा बहुत ही मनोहारी शांत था ,वायु में शीतलता  व सुगंध थी ,चारो तरफ हरे- भरे फूल ,फल ,सरोवर व चहकते पक्षी के साथ नज़ारा स्वर्ग जैसा था ,



अर्जुन सप्तम ऋषि के स्थान जाता है ,वहा के मनोहारी स्थान पर थके होने पर थोडा बिश्राम करता है ,कुछ देर ठहरने के पश्चात ,अर्जुन जल ग्रहण करने सरोवर की तरफ जाता है ,रास्ते में अर्जुन के चेहरे पर एक वृक्ष की टहनी टकराती है ,तो अर्जुन उसे खिंच कर वृक्ष से अलग कर देता है ,|
पेंड से आवाज आती है ,अर्जुन इतनी अकड़ अच्छी नहीं होती ,अर्जुन स्तब्ध हैरान ये पेंड कैसे बोल सकता है ,फिर भी अर्जुन कहता है ,तुम जानते नहीं मै श्रेष्ठ धनुर्धारी  अर्जुन हु ,,|
वृक्ष बोला तुम्हारे अन्दर कितनी शक्ति है ,अर्जुन बोला मै श्रेष्ठ ,सर्व श्रेष्ठ धनुर्धारी हु ,वृक्ष बोला तुम मेरे ऊपर अपने गांडीव तीर से क्या प्रदर्शन कर सकते ,अर्जुन बोला मै एक तीर से तुम्हारे सभी पत्तो को एक बार में भेद सकता हु ,|
वृक्ष बोला तो ठीक है ,अपनी शक्ति दिखावो ,
अर्जुन अपने दिव्यास्त्र से एक ही बार में वृक्ष बने ऋषि के सभी पत्तो को भेद देता  है,पेंड बने सप्तम ऋषि  कहते है देखो  अर्जुन मै ,अब अपनी सारी पत्तियों को त्यागता हु ,त्याग रहा हु ,अब पुनः मेरी नयी पत्तिवो को भेद कर दिखावो ,तब अर्जुन कहता है ,मेरी शक्ति तो गल गयी अब मै दोबारा यह नहीं कर सकता ,सप्तम ऋषि  कहते है ,लेकिन मै दोबारा अपने पत्तो को ला सकता हु ,अर्जुन समझ गया था ,शक्ति से बड़ी शक्ति त्याग है ,जनहित है ,त्याग से शक्ति अर्जित करना है ,उसका गर्व चूर चूर हो चूका था ,वह सप्तम ऋषि के चरणों में गिर पड़ा ,तथा मार्ग दिखाने को कहा ,




सप्तम ऋषि उसे ज्ञान देते है ,अर्जुन यदि शांति चाहिए तो अपने अन्दर के गर्व को अकड़ को अहंकार को मारो, जल बनो ,दुसरो के हित बन राहत दो ,जल जो शीतल होता है ,दूसरो को शांति-तृप्ति  देकर भी अपने कर्तव्य को  नहीं भूलता और अपने को बनाये रखता है ,अर्जुन अपने सारे गिले शिकवे ,अहंकार को भुला देता है और माफ़ी मांगता है  ,तथा वह इस प्रसंग को सप्तम ऋषि से भविष्य के लोगो को बताने को कहता है ,तो सप्तम ऋषि उसे समय देव की जिम्मेदारी पर छोड़ देने को कहते है ,तब से वृक्ष के सम्मान के लिए बसंत पंचमी के दिन पेंड रोप कर उस पर अर्जुन के गर्व अहंकार को जलाने के लिए होलिका जलाते है ,इसी अवधी में पतझड़ भी पड़ता है ,जो फागुन में खेली जाने वाली होली के नाम को सार्थक करता है ,पतझड़ हमें अपनी बुराईवो को त्याग और नयी अच्छी शुरुवात का सन्देश देता है , यही है होली पर्व ,यही हमारे लिए सभी गिले शिकवे अहंकार त्याग कर माफ़ी देने का पर्व बन गया ,
अफ़सोस पर आज शांति के नाम पर लोग अहंकार के नशे से में चूर हो कर उतरने की ,,| परंपरा निभाते है ,जल न बनकर रंग बदलते है ,जल बनो ...
यहाँ मै कहना चाहुगा यदि इंसान के सारे आंसू सुख जाये ,सांसारिक सारी बुराईया लोभ ,मोह ,आदि -आदि निकल जाये तो वह पत्थर बन जाता है ,और उसी पत्थर को हम देवता बना पूजा करते है ,और फिर हम उसी पत्थर को आंसू ,का वास्ता देकर ,दुनियादारी का लोभ देकर फल -फूल आदि आदि चढ़ा  कर फिर इंसान बन कर आने का आग्रह करते है ,ये दर्द है या बेवकूफी या संसार की बेवकूफी आप ही बतावो ,

हा ......मेरे सभी छोटे भायीवो,दोस्तों ,आदरणीय ,और मेरे पाठको को होली की हार्दिक शुभकामनाये ...





                                    लेखक ;- गुलाल के साथ
                                          रविकांत यादव .....





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