Sunday, April 1, 2012

नन्ही -दुनिया


बच्चो की अपनी दुनिया होती है , हम समझते है कि , बच्चे केवल खाने खेलने तक ही सीमित होते है , पर नहीं उनकी दुनिया हम वयस्क लोगो से भी जानकार होती है , बच्चो की दुनिया काफी कुछ तोतो की तरह होती है ,| या बच्चे तोते ही होते है| ,


इधर -उधर झुंड मे खेलना , खाने, पसंद के बगीचे पर धावा , उन्ही तोतो की तरह सुंदर , उन्हे हमारी तरह हाय -हाय से कोई मतलब नहीं होता उन्हे कुछ प्रमुख बाते पता होती है ,|
 बाते वो भी मुख्य -मुख्य जैसे गणित के फार्मूले की तरह जैसे पैसा सबसे काम की वस्तु होती है , कौन मेरे घर का है -कौन पराया है , कौन मेरा घर है , ये मेरा है वो उसका है , कौन अच्छा है , कौन गंदा है , उसका क्या मतलब है , ? आदि -आदि यही बच्चे अपना न्याय और निर्धारण करते है ,|





जो हम वयस्क के लिए कठिन होता  है ,| क्यो की ये चलते बोलते बच्चे अपने काम भर सारी बाते जानते है ,|इनकी गलतिया , गलतिया नहीं भूल होती है ,| और टेंसन  से दूर रहते है ,| ठीक लिलीपुट और गुलिवर की तरह इनकी अपनी दुनिया होती है ,| सबसे बड़ी आश्चर्य -अजूबा ईश्वरीय आशीर्वाद  और न्याय की  बात

ये होती है , कि कुछ बच्चो कि उम्र -कद तो बढ़ती  जाती  है ,पर दिमाग-सोच  वही का वही रहता है  |


                                            लेखक ;- देखते बोलते , रविकान्त यादव





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