Wednesday, September 5, 2012

मन की पवित्रता


आज ५ सितम्बर भारत में शिक्षक दिवस है , | मेरा मानना है , विश्व में किसी  भी गुरु की नजरे व्यर्थ नहीं जाती , क्यों की गुरु तो  गुरु होता है , मैंने तो एक फिल्म में सुना था ,कि गुरु व शिक्षक तब तक साथ चलते है , जब तक उनके रास्ते अलग न हो जाये , | इस विशेष अवसर पर मै अपना यह लेख प्रस्तुत करना चाहुगा ,|



हमारे पास ५ इन्द्रिया  है , मुह (शब्द ) , स्पर्श (महसूस) रूप (शरीर) स्वाद और गंध .....इन्ही से हम संसार से जुड़ते है , ....और संसार हमसे वह चाहे अच्छाई हो या बुराई दोनों रूपों में हो सकता है , गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है , शरीर रूपी रथ , बुद्धि रूपी -भुजाये , मनरूपी बागडोर,और पांच इन्द्रिया घोड़े है , और मन  सारथी अतः जो मन बुद्धि द्वारा इन्द्रिया रुपी घोड़ो को बस में नहीं रखते , वो भोगो के लोभ में दुःख रूपी गड्ढे में गिरते है , | 


मन अत्यंत चंचल और नियंत्रण हीन है , अतः पहले मन को (सारथी ) को दक्षता व साधना चाहिए , जैसे अग्नि सबकुछ जला कर राख कर देती है , ठीक उसी प्रकार इन्द्रिया विकार , काम , क्रोध., मद, मोह, लोभ, इर्ष्या, सब कुछ जला सकती है , | 
जो जलने लायक है , वो तो जलेगा ही, .........जैसे धर्म , अर्थ ,काम , मोक्ष बना है ,|  गुरु रामकृष्ण परमहंस जी ने कहा है , विषयी भोगी मनुष्य गोबर के कीड़े जैसा है , जो उससे हटना ही नहीं चाहता ......हठ योगी इन्द्रियों को काबू में करने के लिए क्या क्या नहीं करते , भूख लगे तो खाना नहीं है , प्यास लगे तो पीना नहीं है , नीद लगे तो सोना नहीं है , (इनको प्रभावित करने के लिए थोडा थोडा मारते है ) मतलब पूरा नहीं खाना पूरा नहीं सोना आदि आदि .... इसे तप भी कहा जा सकता है , जब मौत पर स्वयं का अधिकार नहीं है, तो तो हम अपने विकारो पर कहा तक अधिकार पायेगे ,  परन्तु मात्र सुखो का भोग करने के लिए ये शरीर व जीवन नहीं मिला है ,|

बाइबिल में कहा गया है , ईश्वर के देश में ह्रदय में वही प्रवेश पा सकता है , , जिसका ह्रदय बच्चे की तरह पवित्र हो , मैंने कही पढ़ा था , एक भगवान की प्रतिमा बनने वाली थी , तरह-तरह के दान पात्रो से हीरे ,मोती , युक्त मुकुट, सोना, चाँदी,  आदि कीमती , धातु थी , जिसे गला कर  एक प्रतिमा (मूर्ति) बननी थी , मूर्ति बनी भी , परन्तु लाख  कोसिसो  के बाद भी मूर्ति में चमक नहीं आ पा रही थी , सभी परेशान हो गए , आखिर कारण क्या है , ? सभी प्रार्थना करने लगे ,तब भगवान रात में अपने सेवक को स्वप्न में बताते है , हे राघव एक बच्चे के छोटे उसके अलमुनियम के पैसे  को बेकार जान कर फेक दिया गया है , अतः उस सिक्के को मिलाने पर ही इस प्रतिमा में चमक आएगी ,| 

हमारा पवित्रता के लिए गंगा में स्नान करने का तर्क , इस प्रक्रिया में हमारी सभी इन्द्रिया जैसे कान, नाक, आख, मुह, शरिर,सभी जल में होता है , | और इस प्रक्रिया में इन पर नियंत्रण का ज्ञान मिलता है , व पवित्र जल इन्हें सत्कर्म की प्रेरणा देता है , | 

हमारे धर्म ग्रंथो में कई पवित्र करने वाली प्रार्थनाये , यज्ञ , पूजन, जैसे सुबह,संध्या , प्रार्थनाये , मिलती है, गायत्री मंत्र , आदि-आदि ,||

जो जल में भीगने योग्य है, वो भीगेगा ही , अतः जो पवित्रता योग्य  है , वो तो पवित्र होगा ही , |
मै इस योग्य नहीं की कोई स्तुति मंत्र दे सकु , परन्तु पवित्रता हेतु मेरे साथ-साथ इनका मन में दर्शन कर ये स्तुति  मंत्र बोले ,..........
हे श्री गणेश मुझे नजरो से पवित्र कर दो , हे माँ सरस्वती मुझे श्रवण शक्ति व वचनों से पवित्र कर दो , हे माँ काली मुझे स्वाद से पवित्र कर दो , हे परमेश्वर शिव मुझे सांसारिक गतिविधियों से पवित्र कर दो , हे माँ गंगे मुझे शरिर से पवित्र कर दो , हे माँ लक्ष्मी मुझे धन से पवित्र कर दो , हे प्रभु श्री राम मुझे आचरण से पवित्र कर दो ,हे पवन पुत्र हनुमान मुझे ताकत से पवित्र कर दो , हे गुरु श्री कृष्ण मुझे ज्ञान से पवित्र कर दो ||
                                          लेखक;- आपके लिए ....रविकान्त यादव 
                                              

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