Wednesday, October 31, 2012

आलसी (idle )

कहने को आलस्य तो व्यक्तिगत तौर पर होता है , आलसी को इसी में सुख मिलता है ,| या यह व्यक्तिगत अजीब बीमारी होती है , बीमारी भी ऐसी स्वयं रोगी इसे नहीं छोड़ना चाहता , तो आलस्य भी अपने साथी का साथ निभाते हुए उसे उसकी प्रतिभा को ढकने का कार्य करती है |

कहने को तो आलसी  , मैनेज करने की निति पर चलते है , परन्तु  आलस्य स्थिति समय से मेल-जोल कर अपनी कीमत वसूल लेती है ,| 
आलसी की प्रतिभा जल्दी उभर नहीं पाती | आलसी अधिकतर कोशिश  करना ही नहीं चाहते, हर बात को हल्के में लेना ,|
कबीर जी के दोहे को उल्टा फालो करते है ,| 


वैसे स्लोथ विश्व का सबसे आलसी जानवर है , कई घंटो बिना हिले डुले पेंड पर पड़ा रहता है , और भौरा जो काठ (लकड़ी ) में भी छेद कर दे अपनी व्यर्थ लालसा (आलस्य)में कुमुदनी (फूल) में फँस  मारा जाता है ,|

 जिस प्रकार लोहा में जंग लग जाता है , ठीक उसी प्रकार आलसी की प्रतीभा धीरे -धीरे कुंद होने लगती है , आलसियों को यही सोच होती है ,अरे अभी बहुत समय है,| ,|
या तो बस झटपट में हो जायेगा , परन्तु उन्हें यह नहीं मालूम होता कि उसने समय का सदुपयोग नहीं किया ,और इसी से वो बस अपने आप स्वयं दण्डित होते रहते है , एक चीटी ज्ञान देती है , धीरे धीरे कार्य कि तरफ बढ़ते रहो , पर नहीं आलसी इक्कठे पा लेना चाहते है , |
जानते है आलसी की कमिया क्या है , ? वो अधिकतर समय की कीमत नहीं पहचानते है , परीक्षा के लिए चला एक विद्यार्थी का वाहन ही पंचर हो गया , जैसे -तैसे परीक्षा हाल में गया , हड़बड़ी में कम समय में अपना पेपर ख़राब कर लिया , इसी तरह समय पर पढाई न करना ,क्लास बंक करना आदि ,ये आलसी सड़क पर एक्सीडेंट भी कर लेते है , |
चंचल मन को बस में करना बहुत कठिन है ,और ध्यान केन्द्रित होना जरुरी है , | पर नहीं ये मन बड़ा दुसाहसी है ,अपने ,सपने जबरजस्ती बुन  लेता है ,मन का शोधन जरुरी है , इसके लिए चन्दन बन कर्म से चन्दन तिलक बनना चाहिए , ग्रंथो में लिखा है , चन्दन तिलक से  शरीर शुद्ध  होता है , तथा अन्य माथे पर तिलक लगाने का रहस्य ,लाभ, आप गूगल पर खोज ले ,|

ठीक ही कहा गया है , जल्दी का कार्य शैतान का , संत कबीर जी ने भी कहा है ,कल करे सो आज कर आज करे सो अब , पल में प्रलय होगी बहुरी करेगा कब |

अतः समय से एक घंटा पूर्व एक कदम आगे पहुचने वाला ही कामयाब और सीखने में समर्थ होता है ,|इन्हें दोहरा लाभ मिलता है , |इसलिए आप जो करते है , प्रयत्न यही करे की , उसे एक घंटा पूर्व करे और बचा समय आपको सोचने का मौका देगा .........|
                                                     लेखक ;- लापरवाह ........रविकान्त यादव 

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