एक महात्मा थे, जीवन के ४० साल तक कठोर तप किया , बहुत परिश्रम और नियम संयम से अपनी सिद्धियों को हासिल किया , तथा अब अपने उत्तराधिकारी की तलाश में थे , ।
वह अपने शिष्यो को सप्ताह दर सप्ताह शामिल किया करते थे , इसी दौरान एक शिष्य उन्हें मिला , सप्ताह भर में ही उन्होंने उसे अपनी सारी सिद्धिया सीखा कर पारंगत कर दिया , ।
तब उस महात्मा के समतुल्य मित्र ने कहा तुमने क्या किया मित्र ? जिस सिद्धियों के लिए तुमने अपनी उम्र गुजार दी , 40 साल में तुमने उन्हें हासिल किया , उसे तुमने हफ्ते भर के भीतर अपने नये शिष्य को सौप दिया ,सीखा दिया , तब महात्मा ने कहा बेशक तुम सही हो मित्र , पर इस ज्ञान की सार्थकता तभी है , जब इसे किसी और को इस तप व ज्ञान को सौपा जाय , मेरी 40 साल के तप की सार्थकता इसी में है , वैसे भी समय मायने नहीं रखता , मायने रखता है , ज्ञान की सार्थकता और योग्यता मेरा यह शिष्य इसकी योग्यता रखता है , और मेरी परीक्षा में खरा उतरा है , । और मेरे लिए मेरा यह कदम मेरी सिद्धियों के लिए सार्थक कदम है ,॥
लेखक;- योग्य व्यक्ति के साथ..... रविकान्त यादव
वह अपने शिष्यो को सप्ताह दर सप्ताह शामिल किया करते थे , इसी दौरान एक शिष्य उन्हें मिला , सप्ताह भर में ही उन्होंने उसे अपनी सारी सिद्धिया सीखा कर पारंगत कर दिया , ।
तब उस महात्मा के समतुल्य मित्र ने कहा तुमने क्या किया मित्र ? जिस सिद्धियों के लिए तुमने अपनी उम्र गुजार दी , 40 साल में तुमने उन्हें हासिल किया , उसे तुमने हफ्ते भर के भीतर अपने नये शिष्य को सौप दिया ,सीखा दिया , तब महात्मा ने कहा बेशक तुम सही हो मित्र , पर इस ज्ञान की सार्थकता तभी है , जब इसे किसी और को इस तप व ज्ञान को सौपा जाय , मेरी 40 साल के तप की सार्थकता इसी में है , वैसे भी समय मायने नहीं रखता , मायने रखता है , ज्ञान की सार्थकता और योग्यता मेरा यह शिष्य इसकी योग्यता रखता है , और मेरी परीक्षा में खरा उतरा है , । और मेरे लिए मेरा यह कदम मेरी सिद्धियों के लिए सार्थक कदम है ,॥
लेखक;- योग्य व्यक्ति के साथ..... रविकान्त यादव
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