Saturday, September 5, 2015

विकार (addiction)

कहते है ,हिन्दु धर्म में काम ,क्रोध,मद,मोह,लोभ, ईर्ष्या वे मानव जीवन के विकार है ,। अतः इन्हे त्याग करना चाहिए , जो हम जानते ही नहीं ,उसे क्या त्यागे ???? मेरा आशय है ,ये सब न हो, तो व्यक्ति मानव कहा रह गया , इस हांड -मांस व चमड़ी के शरिर को इन विकारो की बहुत जरुरत है , यदि जीवन है ,तो इन विकारो की बहुत जरुरत है ॥
ऐसा मेरा मानना है ,अन्यथा वह व्यक्ति मरा  हुआ है, । इन विकारो को जाने व समाज हित में मोड़े ,मेरा आशय है , इन विकारो को दूसरे अर्थो में लेने का ,………

1 )यदि हम गृहस्त होगे तो श्रीराम ,कृष्ण या अन्य जैसा समाज को उत्थान करने वाला पुत्र मिले ।

2 ) क्रोध हो तो अपने दुर्गुणों से व्यसन से , देवी दुर्गा ,देव परशुराम की तरह सही व समाज कल्याण हेतु

3 )मद हो तो भगवान महावीर की तरह बुद्ध की तरह ,भगवान वामन की तरह ऐसा, की मै ही संसार में सबसे निम्न -नीचे ,मेरे जैसा विनम्र कोई हो तो मै उससे मिलूँगा ।
4 )मोह, मेरा मोह ऐसा हो ,कि ये बंधन को एकजुट हो ,प्यार,अहसास ,जज्बात ,आदर ,समर्पण का ,देवी माता सीता की तरह , भक्त मीरा की तरह , प्रभु चैतन्य की तरह , कबीर और रविदास की तरह भक्त प्रह्लाद व ध्रुव की तरह इस डोर को थामने पर  ईश्वरीय या अन्य चाहत की जरुरत नहीं , यही जीवन की रित  हो। ...
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5 )लोभ ,ऐसा हो ,जो सदा मदद को तत्पर हो , एक गुरु की तरह , मेरी भलाई से कोई बच न पाये ,ये भावना होनी चाहिए। ………

                               
6 )ईर्ष्या हो तो प्रेरणा के रूप में ऐसी उभरे की मै उससे बेहतर बन कर रहुगा । तमाम सदगुणो को अन्तहकरण में उतारूँगा -ठीक बड़े भाई राम की तरह ,भरत बनकर ,कर्ण ,एकलव्य बनकर हो। ………
ये जीवन अमूल्य है । हम मानव है ,और ईश्वर नहीं हो सकते परन्तु संसार में आत्म शुद्धि , पवित्रता , सही होते हुए इस तरह चलने पर देवताओ को भी आपसे ईर्ष्या हो सकती है । 
लेखक;- संसारिक  … रविकान्त यादव 





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