एक भक्त 3 किलोमीटर जाकर भगवान् को उनका प्रिय पुष्प अर्पित करता , उसकी तपस्या पूर्ण हो चुकी थी , परंतु भगवान थे की आने को ही नहीं रहे , वह पत्थरो पर सर मारता फ़रियाद करता , मेरे पुष्प अर्पण में क्या कमी रह गयी ?
भगवान तुरंत आ गये , बोले हे भक्त , मुझे पाना चाहते तो वही पा जाते जहा से तुम ये पुष्प तोड़ लाते हो , परंतु तुम ब्यर्थ के आडम्बर में फँसे रहे ।
मैं उन पुष्पो के मुस्कान में था , वहा उड़ रही तितिलियो में था , वहा मंडराते भवँरो में था , उस बगीचे के पेंड़ो , पत्तियो, छायाओ , फलो, पक्षियों , सुगन्धित हवाओ में था , मैं पल -पल तुम्हारे साथ भी था , ।
परंतु तुम तो व्यर्थ कर्म कांडो में पड़े रहे , एक भक्त से कीमती भगवान् के लिए कुछ नहीं होता ।।
प्रश्न है , ईश्वर की बनाई दुनिया में उसे ही हम क्या अर्पण करे ??
बस नजरिया और भावना होनी चाहिए ।
ईश्वर प्रत्येक जगह है , प्रकृति व जीव जंतु हेतु सेवा , दया , परोपकार, सम्मान , कर्तव्य ही ईश्वर को पाने का मार्ग है ॥
लेखक;- जीवन मार्ग से........ रविकान्त यादव
for more search me on google ;- facebook.com/ravikantyadava
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मैं उन पुष्पो के मुस्कान में था , वहा उड़ रही तितिलियो में था , वहा मंडराते भवँरो में था , उस बगीचे के पेंड़ो , पत्तियो, छायाओ , फलो, पक्षियों , सुगन्धित हवाओ में था , मैं पल -पल तुम्हारे साथ भी था , ।
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बस नजरिया और भावना होनी चाहिए ।
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