Thursday, April 21, 2011

सारनाथ शहर और साधु की सारंगी


                











प्रभु यशु जो करुणा,प्यार और त्याग के देव है ,उनका जन्म क्रिसमस डे और  बलिदान दिवस गुड friday के रूप में मनाया जाता है ,क्रिसमस पर बच्चो की खुशियों का विशेष ध्यान रखा जाता है ,इसलिए सांता क्लाज के वेश में उन्हें गिफ्ट दिया जाता है ,हिन्दू कैलेंडर में क्रिसमस को बड़ा दिन का प्रारंभ माना जाता है ,स्वयं प्रभु एक अच्छे भेड़ पालक माने गए है ,प्राचीन काल से ही मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए जानवरों का प्रयोग करता रहा है ,समय बदला और मनुष्य के प्रकोप से हवा, पानी ,जंगल तो प्रभावित हुए ही बल्कि जानवरों को और भी यातना का सामना करना पड़ रहा है , हम सभी जानते है ,की पशु पक्षी समझदार होते है ,जहा खाना- पानी -प्यार मिलता है वही वापस लौट आते है ,फिर हम उन्हें चिड़ियाघर बना कर तिल तिल क्यों मारते है ,? 






उन्हें खुला वातावरण में रखो ,खाना पानी दो वे स्वयं समय समय आते रहेगे पर नहीं  हम मानव श्रेष्ठ बुद्धिजीवी है ,तो मनमानी करेगे अपने मनमानी के लिए जानवरों के भगवान बनते है ,उन्हें अपनी हैसियत  बताते है ,और उनकी ज़िन्दगी नरक बना देते है ,वो भी थोड़े पैसो के लिए क्या हमें ये अधिकार है?? ,कि हम किसी पशु -पक्षी की आज़ादी  छीने , हां शायद है , क्यों की धरती केवल मनुष्यों की है,और नियम -कानून मनुष्य अपने लिए बनाते है ,इसलिए विश्व  में सबसे स्वार्थी मनुष्य ही है ,| हमारे वाराणसी में सारनाथ गौतम बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली ,जहा सम्राट अशोक का शौर्य आज भी विद्धमान है ,वहा  जानवरों पक्षियों का उत्पीडन एक मजाक नहीं तो क्या है ,मै बात कर रहा हु सारनाथ चिड़िया घर की ,|
कहा गया बौद्ध धर्म और मानवता पर आज सिद्धार्थ गौतम बुद्ध किसी पक्षी को बचाने नहीं आयेगे ,
हमारे वाराणसी में जहा पैर रखने को भी सोचना पड़ता है ,वह मशीनी युग में एक्का गाड़िया घुस आती है ,आप उन बेचारे घोड़ो को देखकर ही सोचने पर विवश हो सकते है ,यहाँ यह समझ नहीं आता ये घोड़े हमें परेशान कर रहे है ,या हम इन बेचारे घोड़ो को,अंत में यही की ,मनुष्य को मनुष्य की बुरी नज़र लग जाये तो आदमी बीमार हो जाता है ,पर यदि मनुष्य की बुरी नज़र अन्य जीव पशु -पक्षियों को लग जाये तो वो बेचारा मर ही जाता है ,सायद इसीलिए अन्य जीव -साँप आदि अपनी सुबह यही मानते है मनुष्य का दर्शन न हो ,और हमें उन्हें दर्शन देना भी नहीं चाहिए ,और हमें भी न होने देने का प्रार्थना करना चाहिए ,|
स्वार्थी मनुष्य के लिए ....
बहते दरिया उड़ती हवा भी बच न पाई,
पेंड -पौधों जीवो की मर गयी सारी कमाई ,
करामात कहे या खुरापात मनुष्य जोड़ता फिर रहा पाई -पाई ,
हद तो तब हो गयी जब जिंदगी  के लिए जिंदगी मौत बन कर आई ....||





     




प्रकृति की बनाई जीव -जंतु बहुत सुन्दर है ,साँप पक्षी सभी क्यों की इनके पास केवल दिल होता है ,इसलिए  इसलिए इनसे प्रेम करो इनका ख्याल रखो और दरियादिली दिखावो उन्हें परेशान न करो ,वादा है ,ये आपका ख्याल रखेगे और आपको ईश्वरीय आशीर्वाद भी मिलेगा ,|
हमारे भारत में हिन्दू प्रमुख देवी -देवतावो का प्रतीक वाहन ये जानवर ही है ,
धन ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी जी का वाहन-उल्लू है ,
ज्ञान की देवी सरस्वती जी का वाहन -हंस ,शक्ति स्वरुपा नवशक्ति दुर्गा माँ का वाहन -शेर ,देवराज इन्द्र का वाहन -एरावत हाथी है , दुनियादारी के देवता भूतभावन शिव जी का वाहन -नंदी बैल ,श्री कृष्ण और सृष्टि पालक भगवान विष्णु जी का वाहन -गरुण पक्षी है ,देवसेनापति शिव पुत्र कार्तिकेय जी का वाहन -मोर है ,जग लोक कल्याणकारी पतित पावनी माँ गंगा जी का वाहन -मगरमच्छ है ,कड़े कठोर शिक्षक शनिदेव जी का वाहन -गिद्ध ,चिल है ,प्रथम पूज्य बुद्धि के देव ,देवगण भगवान गणेश जी का वाहन चंचल मूषक है ,प्रत्यक्ष देव सूर्य जी का वाहन -सात घोड़ो का रथ है ,प्रकृति देवी का जो  वर्षा  करती है ,उनका वाहन -तोता है ,कहते है ,हमारी पृथ्वी भी शेषनाग के फन पर टिकी  है , आदि आदि .....
आज आप पशु -पक्षी को बड़ी सरलता से पहचान जाते है ,पर मनुष्यों को पहचानना बड़ा कठिन है ,पता न जाने क्या हो उनके मन में ,इसलिए ये देवो के वाहन है ,और वे ज्ञान ,शक्ति ,व्यक्तित्व को भी बताते है ,
जीव -जंतु से प्रेम अहसास एक तपस्या के समान है ,जैसे डाकू से वाल्मीकि बने उनके शरिर पर दीमको का बसेरा होना , बाद में इन्होने रामायण लिखी , ऋषि मुनियों के शरिर पर चिडियों का घोसला बनाना आदि एक तपस्या से बढ़कर बात होती थी ,एक बार एक हाथी जल पीने सरोवर पर जाता है ,तो एक मगर उसको पकड़ जल में घसीटने लगता है ,वह सूंड उठा भगवान का स्मरण करता है ,भगवान विष्णु आकर चक्र से मगर का वध कर  हाथी की रक्षा करते है ,
इन देवी देवतावो के पूजन और उनके वाहन के पूजा से आशीर्वाद तो मिलता ही है ,इच्छित पुत्र रत्न भी इन देवो के गुणों युक्त प्राप्त किया जा सकता है ,| हिंदु धर्म में देवी देवतावो का ही नहीं पशु -पक्षी को आदरणीय स्थान तो है ही ,वरण तमाम पेड़ -पौधों की भी पूजा की जाती है ,जो जीवन का पोसन ही नहीं करते बल्कि फल -फूल -जड़ ,लकड़ी के आलावा पत्तो का भी अतुलनीय स्थान है , तुलसी पत्तो का स्थान तो जगत में विख्यात है ,,
प्रस्तुत है कुछ मूल्यवान पौधों का नाम -चन्दन ,अफीम ,देवदार ,सागवान ,इलाईची ,लौंग ,केसर ,काजू ,बादाम ,अखरोट ,आदि मूल्यवान फल और वृक्ष है ,
यदि नीम ,नीबू ,और गेंदा के पत्तो को मिलकर जलाया जाय तो मच्छर,रोगकारक  कीटाणु   आदि से रक्षा करता है , ये मेरा प्रयोग है , जो जहरीली मच्छर मार क्वा इल से ९० % बेहतर है ,|
इन्ही पत्तिवो के गुण बोध कराने को पतझड़ भी होता है ,पत्तियों का अर्क भी उपयोगी है , जामुन पत्ती  अर्क भी  मधुमय रोगियों के लिए वरदान है ,पत्तियों को उबाल कर भी उनके गुण प्राप्त कर सकते है , हमारे पालतू जानवर जी पत्तिवो को खाते है ,उनमे जरूर कोई न कोई गुण तो होगा ही ,क्यों की ये जानवर जहरीली पत्तियों पौधों से दूर रहते है ,उन्हें नहीं खाते ,
आज के समय में आयुर्वेदिक खेती कर भी लाभ कमाया जा सकता है , इनसे तमाम दवा, क्रीम ,अन्य तक बनती है ,जाते जाते किसी की महानता ही उनकी कमजोरी हो सकती है , अनुभव अच्छी चीज़ है पर मदद को हाथ बढ़ाने पर यह और भी खूबसूरत हो जाती है , निर्वाण का प्रयास सदा अधूरा रहता है ,जब तक दया ,प्रेम ,करुणा युक्त भगवान् महावीर न बना जाय ,
जिस प्रकार हम खेल खेल में मिटटी के घरौंदे बनाते है ,और बिगाड़ कर उससे अच्छा बनाने की कोसिस करते है , ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी अपने जीव -जंतु जैसे छोटी रचना से प्रेम करते है ,अतः जीव सेवा से ,तपस्या के साथ ईश्वर का आशीर्वाद भी मिलता है ,जिस प्रकार शरिर की शादी होती है उसी प्रकार आत्मा अकेली रहती है शरिर मिलने पर कर्तब्य का दायित्व मिलता है ,जीव सेवा ही परमात्मा सेवा है , पत्थर पूजा से ये संभव  नहीं ......||||
लेखक ;- ह्रदय से ..... फिर वही आपका  रविकान्त यादव ...एम् कॉम .२०१० 







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