नवरात्र का यह दूसरा पर्व मनाया जाता है ,| पहला रामनवमी का और यह दूसरा नव दिनों तक चलने वाला ,| यह पर्व राम विजय ,दशहरा तक मनाया जाता है ,| इस समय पुरा उत्तर भारत रामलीला के साथ माँ दुर्गा पूजा के साथ भक्ति मय हो जाता है ,| नव दिनों तक चलने वाला यह पर्व नव देवियों के पूजा का पर्व है ,| जो सभी माँ दुर्गा का ही रूप है ,| यह पर्व प० बंगाल में सबसे भव्य होता है ,| वह माँ दुर्गा की एक से बढ़कर एक पंडाल और मनमोहक प्रतिमाये स्थापित होती है ,| जो नवरात्री समाप्ति पर विसर्जित की जाती है ,|वैसे पुरे भारत में प्रतिमाये स्थापित की जाती है , | हमारे वाराणसी में भी कई जगह भव्य पंडाल और दर्शनीय प्रतिमा स्थापित होती है ,| यह पर्व रावण वध के विजय जुलुस दशहरा के साथ समाप्त होता है ,| यह पूरा सितम्बर -अक्टूबर महीना पुरे भारत में ताबड़-तोड़ त्योहारों का महीना है , आप पता लगा सकते है? , कहा क्या मनाया जा रहा है ?जैसे ;- गणपति पूजा से लेकर ओणम , डंडिया आदि |
अब मेरी शीर्षक कहानी ;- एक बार साधु -संतो का एक समूह अपने लिए सिद्धियों की प्राप्ति के लिए हवन -पुजा अर्चना कर रहे थे , तथा उसके लिए उन्हें महीनो विधि -विधान से मंत्रो का उच्चारण करना था ,| उसी समय एक अशिक्षित -अनपढ़ व्यक्ति उन विद्वान संतो के पास आया तथा विनम्रता से बातचीत जानकारी आदि लेने के बाद स्वयं भी सिद्धिया प्राप्त करने की लालसा व्यक्त किया | उसकी इस बात को सुनकर साधु -संत हँसने लगे ,उसका उपहास करने लगे ,कि जिन सिद्धियों के लिए बड़े -बड़े विद्वान भी हासिल नहीं कर पाते, उसे तुम अनपढ़ -गवार छोटे साधारण व्यक्ति क्या प्राप्त करोगे ,? अतः तुम यहाँ से जावो अब हमारा समय न व्यर्थ करो ,?
इस तरह सभी विद्वान संत प्रतिदिन किताबो से मंत्रो आदि का पाठ करने लगे , साथ में किसी तरह एक किनारे वह अनपढ़ भी किताबे उलटता -पलटता ,|
इसी दिन वह अनपढ़ व्यक्ति पुनः कुछ दिनों बाद उन विद्वान संतो के पास आया पर इस बार उसे वह सिद्धिया प्राप्त हो चुकी थी , | जो उन विद्वान संतो को अभी तक नसीब नहीं थी ,| इस पर सारे साधु -संत आश्चर्य चकित कि एक अनपढ़ यह कैसे प्राप्त कर सकता है| ,सभी उसके चरणों में झुक गए , तथा पुछा की यह कैसे संभव है ?, कि बिना मंत्र पढ़े , तुम सिद्धि प्राप्त हो गए ,तो उसने बताया कि वह भी उन लोगो के साथ मंत्रो को सुनता तथा आप लोगो कि तरह पन्ने पलटता पर उसे हर पन्ने पर केवल देवी का मनोहर छवि ही दिखती ,उनके विभिन्न रूप दिखते ,इस तरह उसने अपनी सिद्धि प्राप्त कर ली ,| अब सारे विद्वान उसके चरणों में माफ़ी मांग रहे थे ,|
जाते -जाते यही देवी से आशय प्रकाशित करने वाला है , | सिद्धियों से आशय अन्य चमत्कारिक शक्तिया जैसे पानी पर चलना , हवा में उड़ना , आत्म तेज़ , अमर ज्ञान , विराट रूप धरना , किसी भी जगह पलक झपकते चले जाना ,आदि के योग्य बनना ही सिद्धिया है ,| जिस प्रकार हम कर्म करते है , तो कुछ मिलता है |,ठीक उसी प्रकार ईश्वर ने हमें कही न कही अपने उद्देश्यों के लिए ही बनाया है ,| हमारे कर्मो के कुछ भागो पर उनका ही अधिकार है , परन्तु हम अपने बुरे कर्मो के जिम्मेदार स्वयं है ,| जाते -जाते यही की हमें सन्यासी लोग केवल यही सिखाते है ,प्रीत न रखो क्यों की प्रीत होने पर दर्द होगा , की वो कैसा है .ये कैसा है , | पर एक क्षण में सकुशल देख भर लेने से दर्द कम हो जाता है ,| शायद इसीलिए सन्यासी बनना कठिन है |
क्षमा करना आना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है , परन्तु यह सामने वाले की नीचता दर नीचता के लिए मान्य नहीं है ,| पर कभी -कभी एक बूँद आँसू सारे अपराध शुद्ध कर देती है ,|
दर्द ,तड़प,प्रेम, पवित्रता , आँसु ,ताकत के लिए ....
एक दीप ज्योति चला लेकर ,न जाने कैसे दिल में ही समा गयी ....
ज्योति भी ऐसी जो अन्दर ही अन्दर जला और तडपा गयी ...|
आँसु भी गंगा से जो गिरे एक और समंदर बना गयी ,
और नजरो से दुर एक द्वीप और किसी की दुनिया ही डूबा गयी |||
लेखक - दर्शनार्थी ....रविकांत यादव ...
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