इसी क्रम मे एक बार उनकी बेटी बीमार ,पड़ी रात भर दुबिधा मे थे , दूसरे सुबह एक व्यक्ति उनके दरवाजे आ जाता है , भक्त संकट से खिन्न उस द्वारे आए याचक को भगा देता है ,|
तथा दवा दारू के फेर मे व्यस्त रहता है ,| रात होती है , उस भक्त को वही याचक सपने मे आकर , कहते है ," वाह शोभनाथ तुमने अपने बीते दिनो मे मुझे वक्त -बेवक्त बेवजह दर्सन कर -कर के परेशान कर दिया , और आज मै तुम्हारा दर्शन करने आया तो तुमने मुझे दरवाजे से ही झिड़क दिया , "
इसी क्रम मे भक्त की नीद टूट गयी , भक्त भरे रात मे रोते -चिल्लाते भगवान धाम द्वारकाधीश के मंदिर दौड़ पड़े , |
रात को द्वार के कपाट बंद थे , सुबह दर्शन कर जैसे ही ,भक्त घर पहुचते है ,| उनकी बेटी की तबीयत ठीक हो चुकी थी , वह हस खेल रही थी ,|
लेखक ;- व्यस्त ...रविकान्त यादव
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