Friday, August 10, 2012

भक्त और भगवान



एक भक्त थे , मनोयोगी जब -तब भगवान के दरबार मे पहुच जाते समय के साथ साथ भक्त सप्रेम जीवन निर्वाह करते रहे , धीरे-धीरे उनकी गृहस्थ जीवन मे सुख -खुशी आदि ने कदम रखा उनका जीवन सुखमय बीत रहा था , |

 इसी क्रम मे एक बार उनकी बेटी बीमार ,पड़ी रात भर  दुबिधा मे थे , दूसरे सुबह एक व्यक्ति उनके दरवाजे आ जाता है , भक्त संकट से खिन्न उस द्वारे आए याचक को भगा देता है ,|

तथा दवा दारू के फेर मे व्यस्त रहता है ,| रात होती है  , उस भक्त को वही याचक सपने मे आकर , कहते है ," वाह शोभनाथ  तुमने अपने बीते दिनो मे मुझे वक्त -बेवक्त बेवजह दर्सन कर -कर के परेशान कर दिया , और आज मै तुम्हारा दर्शन करने आया तो तुमने मुझे दरवाजे से ही झिड़क दिया , "


इसी क्रम मे भक्त की नीद टूट गयी , भक्त भरे रात मे रोते -चिल्लाते भगवान धाम द्वारकाधीश के मंदिर दौड़ पड़े , |
रात को द्वार के कपाट बंद थे , सुबह दर्शन कर जैसे ही ,भक्त घर पहुचते है ,| उनकी बेटी की तबीयत ठीक हो चुकी थी , वह हस खेल रही थी ,|

लेखक ;- व्यस्त ...रविकान्त यादव

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