दोस्तो आज मेरा जन्मदिन है , इसलिए अपनी कहानी मे एक लिख रहा हु ,एक बार एक तपस्वी हुए ,अपने ज्ञान तप-कर्म से उन्होने अन्य ग्रहो के देवता तक को विवश कर दिया
,देवता खिचे चले आए ,खिचे चले क्या आए गुलाम ही बन गए , क्यो की वो उन तपस्वी -कर्मवीर के आगे कही ठहरते नहीं थे , देवता गुलाम की तरह उनके आदेशो को मान रहे थे , |
देवता आते और उनकी इच्छा पूरी कर चले जाते , इसी तरह उनको तपस्वी को एक दिन इस पृथ्वी से मोह भंग हो गया उन्हे लगा ये पृथ्वी ठीक जगह नहीं है , बहुत देख लिया ऐसी जगह , यहा का क्या प्राकृतिक नियम है ? यहा सभी खुश -सुखी नहीं है , अच्छे है तो ,लेकिन बुरे भी है ,दोनों का अपनो पर बस नहीं है , यहा का न्याय बहुत पेंचीदा है , अब मै पृथ्वी पर नहीं आयुगा उन्होने देवतावों को बुलाया और वो तुरंत आ गए इस तरह उन्होने जाहिर किया ,चलो मै अब पृथ्वी नाम इस गृह पर नहीं रहुगा , तभी एक चतुर देवता चित्रगुप्त ने कहा हे ,परम आप भी परमेश्वर तुल्य है , परंतु क्या आपको किसी का कर्ज लेकर इस तरह सशरीर चले जाना उचित लगता है ,|
इस पर तपस्वी ने कहा कैसा ऋण ? तब उन्होने (चित्रगुप्त) ने कहा आप परम ज्ञानी है फिर भी आप को ये पता तो होगा ही ,कि आपने इस पृथ्वी पर ही सभी कुछ प्राप्त किया , ज्ञान ,तप, भोजन, सुख, दुख, रिश्ते, नाते, और ये शरीर सभी कुछ, तो क्या पृथ्वी माता का ऋण लेकर आप यहा से जाएगे ?क्या उनका कर्ज वापस करना आपका कर्तव्य नहीं बनता, केवल आप का एक प्राण -ऊर्जा ही इस पृथ्वी का नहीं है,| वरना सभी कुछ आपके इस पृथ्वी माता का ही है , |तभी पृथ्वी भी प्रकट हो जाती है , और समय , अवधि ,प्रेम , बचपन खेलकूद का वास्ता देकर याद निशानी की बात कहती है , |
तपस्वी समझ गए थे , मै यह बेकार शरीर नहीं ले जा सकता , मै इस जन्म मे पृथ्वी माँ तो क्या माँ का भी कर्ज नहीं चुका सकता , और इस तरह तपस्वी अपने शरीर को पृथ्वी माँ के लिए याद स्वरूप
छोड़ , जहा का प्राण था ,वहा चला गया ,............||
लेखक ;- प्राणी ...रविकान्त यादव(join me on ravi.k.yadav16@facebook.com)
.
ReplyDeleteवाह जी ! अच्छी कहानी कही …
:)
विलंब से ही सही…
♥रविकांत जी ♥
आपको
*जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*
-राजेन्द्र स्वर्णकार