Sunday, January 24, 2016

मेरे अमर विचार part 6 (my immortal thought my way and my world )

* कुछ लोग जिंदगी को अपनी मानते है , और कुछ ईश्वर की देन मानते  है । 

* पक्का व्यापारी वर्तमान में जीता है । 

* कल्पना , कर्म , और काल पर ही सब कुछ निर्भर है । 

* यदि पैसा ही सब कुछ है , तो मुझे नहीं चाहिए सब कुछ । 

* मनुस्य के लिए दो ही विकल्प है , पहला ज़िन्दगी के लिए जीना  तथा दूसरा  जिन्दा रहकर जीना । 

* समाज में रहकर समाज के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए । 
*पहले नाम के लिए  नहीं काम से पहचाना जाना चाहिए । 

* मिथ्या निंदा, ठीक अंगारो को अपने घर में फेकने जैसा है । 

* बुरे व्यक्ति से बात करते समय वो अपना परिचय देने लगते है , अतः अपने में सिमित रहो । 

* उत्सुक व्यक्ति ज्ञान में भी ज्ञान खोज लेता है । 

* जिंदगी जीना उससे सीखो जो जिंदगी को गुलाम बना अपने ही धुन में मस्त रहता है । 

* अच्छाई को खोजना पड़ता है ,पर बुराई सामने ही दिखती है, अतः पहला विकल्प ही समस्या है । 

*वर्तमान में हमारी नाराजगी कही भविस्य में हमें वही न बना दे इसलिए सोच कर वक्तव्य दे। 

* कभी अच्छाई बुराई को रोक देती है , तो कभी बुराई अच्छाई को वो हमारी शुद्धता और विवेक पर निर्भर करता है । 
* आरोप लगाने वाले व फालतू बकवास करने वाले अंधे ही नहीं , काले दिल वाले होते है , व अपने कर्म में (साथी )हमजोली की चाहत रखते है । 

* जिम्मेदारी एक ऐसा बोझ है ,जो ९०% लोगो को नहीं दीखता और इसी में देश के विकास का राज छुपा है । 

*अच्छाई आप के लिए ठीक है , परन्तु बुराई न आपके लिए ठीक है , न समाज के लिए । 

*जिंदगी के साथ चलना काफी नहीं है , दुसरो की जिंदगी के साथ चलना ,निभाना ही वास्तविक जिंदगी है । 

* स्वार्थी लोगो के लिए भावनाए किसी काम की नहीं । 
* सम्मान एक पुल के सदृस्य है , एक भी छोर न होने से अनायास परेशानी होती है । 

* समाज को दूसरे की भावनाओ के लिए बहुत कम समय होता है । 

* हमारी यादे हमारी पीछा नहीं छोड़ती जब तक उससे बेहतर कुछ न हो । 

*हसना और हसाना में उतना ही फर्क है , जितना जमीन और आसमान में । 

*विवेक से कार्य पर ,हानि नहीं होती । 

* आज़ादी हो तो अच्छा करने , अच्छाई के लिए हो वरना उस आज़ादी का कोई मायने नहीं । 

*वह व्यवसायी किस काम का   जिसकी गोपनीयता न हो । 

*क्षमा न करने योग्य लोगो के लिए कोई भी तरीका अपनाया जा सकता है । 

* हर व्यक्ति जीरो से आरम्भ होता है , और वही ख़त्म और फिर अगला व्यक्ति यही से आरम्भ और यही से ख़त्म, और फिर अगला यह क्रम परिवार में समाज में कड़ी  दर क्रम चलता रहता है । 
* सद्बुद्धि सौ दुखो की केवल एक मात्र दवा है । 
* जिंदगी एक सफर है , जिसकी ख्वाहिशे  बढ़ती जाती है , और मंजिले घटती जाती है । 

* महाभारत में पांडव जुए में हारकर १२ वर्ष वनवास और १ साल का अज्ञात वास भोग रहे थे , एक बार घूमते घूमते  पांडवो को प्यास लगी युधिस्ठिर ने छोटे भाई सहदेव को पानी लेने भेजा खोजते खोजते वह एक तालाब पर पहुंचे जैसे ही जल भरने लगे तो एक यक्ष की आवाज आई यह मेरा तालाब है , पहले मेरे प्रश्नो का जबाब दो फिर जल ग्रहण करो वरना मृत्यु को प्राप्त होगे , परन्तु सहदेव ने बिना प्रश्न के जल  ग्रहण किया जिससे सहदेव की मृत्यु हो गयी ,इस तरह एक एक कर सभी पांडव एक दूसरे को खोजते हुए वहा जाते है ,फिर वही शर्त इस तरह सभी बारी बारी से चारो पांडव मारे जाते है । 
अंत में सबसे बड़े युदिष्ठिर पहुंचे फिर वही आवाज़ युधिस्ठिर ने सभी प्रश्नो के सही जबाब दे दिए तब यक्ष ने कहा अब तुम यहाँ पड़े किसी एक को जीवित कर सकते हो , तब युधिस्ठिर ने नकुल का नाम लिया , तब यक्ष ने कहा तुम अपने सगे भाइयो को छोड़ नकुल को ही क्यों जिन्दा किया , तब उन्होंने कहा मैं अपने माता का ज्येष्ठ पुत्र हु ,तथा इस तरह अपनी छोटी माता के ज्येष्ठ पुत्र के भी जीने का अधिकार है । तब खुश होकर यक्ष ने जो की युधिस्ठिर के पिता धर्मराज थे ,जो उनकी परीक्षा ले रहे थे ने सभी को जीवित कर दिया , तथा कहा धर्म की राह में अपने परायो में अंतर नहीं देखा जाता । 
लेखक;- विचारक ......... रविकान्त यादव join me on facebook.com/ravikantyadava


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