Friday, May 25, 2012

उदासी



  एक मध्यम गरीब बालक अपने दिन प्रतिदिन की बचत से , गुल्लक मे पैसे जमा करता , धीरे धीरे समय बदला , पर वह बालक अपने पैसे बचाने की शौक पर कायम रहा , एक दिन उसका इंतज़ार  समय आया और  उसका गुल्लक भरता है ,| तो उसने अपना गुल्लक तोड़ा , उसमे तरह -तरह के अनेक छोटे -बड़ी मुद्राए थी , वह कभी उसे गिनता तो कभी एक -एक कर जोड़ा बनाता तो कभी एक के ऊपर एक रखता ,टावर बनाता , वह खुश था , |


तभी उसके पिता जी आते है , | और मुद्रावों को  गिनता खेलते देख कहते है ,| बेटा ये 25 पैसे तक मुद्राए भारत सरकार ने चलन से खत्म कर दिया है , | और ये 50 पैसे को देख दुकानदार बेइज्जत कर लेने से मना कर दे रहे है ,|

ये अब केवल खेल व रद्दी की मुद्राए -सिक्के है ,|ये कही स्वीकार नहीं  होगी , अब उस लड़के को उदासी ब्याकुलता  ने घेर लिया , और चेहरा सफ़ेद पड़ गया , |



उसके तमाम अपेक्षाए सपने और कर्म बेकार जो चले गए थे , उसे इस तिकड़म  का दुरो तक अंदाजा नहीं था , जिस देश से उम्मीदे  थी , उसी देश ने उसके उम्मीदों पर पानी फेर दिया था , |

अपने ही द्वारा इक्कठे किए गए पैसो को देखकर भी उसकी खुशी के रंग मे कमी थी , उसे लगा वह ठग लिया गया है ,|||


जाते जाते यही की लोग 25-50 पैसे वालों लोगो को नीची नजर से देखे और स्वयं सरकार भी 25-50 पैसे देश मे चलाने मे स्वयं को अपमानित महसूस करे ?? तो बेहतर यही होगा की इन्हे ही चलन से बाहर कर दिया जाय ,?!! अर्थात 25 पैसे मे अब कुछ मिलेगा ही नहीं तो फिर इन्हे चलन मे रखने का क्या अर्थ स्वयं को अपमानित करवाना मज़ाक बनवाना ही होगा ????/ अतः लाज बचाने के लिए इन्हे चलन से बाहर करना ही विकल्प व  समझदारी है ,|


ये महगाई अटल सरकार से चल , कारगिल युद्ध लड़ आज यहा पहुच गयी है ,| अंत मे यही कि पैसे के लिए देश के लिए कुछ भारतीय सीमा पर शहीद    होते है तो विडंबना दूसरी तरफ पैसे के अभाव मे भुखमरी हो रही है , यहा क्लिक कर मेरी ये रचना भी पढे ...।http://indianthefriendofnation.blogspot.in/2010/02/1.html

अंत मे यही की जब एक सिक्को की परंपरा नहीं निभी तो हम एक देश की परंपरा कहा तक निभा पाएगे ,||


लेखक ;- व्यथित ...रविकान्त यादव













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