एक मध्यम गरीब बालक अपने दिन प्रतिदिन की बचत से , गुल्लक मे पैसे जमा करता , धीरे धीरे समय बदला , पर वह बालक अपने पैसे बचाने की शौक पर कायम रहा , एक दिन उसका इंतज़ार समय आया और उसका गुल्लक भरता है ,| तो उसने अपना गुल्लक तोड़ा , उसमे तरह -तरह के अनेक छोटे -बड़ी मुद्राए थी , वह कभी उसे गिनता तो कभी एक -एक कर जोड़ा बनाता तो कभी एक के ऊपर एक रखता ,टावर बनाता , वह खुश था , |
तभी उसके पिता जी आते है , | और मुद्रावों को गिनता खेलते देख कहते है ,| बेटा ये 25 पैसे तक मुद्राए भारत सरकार ने चलन से खत्म कर दिया है , | और ये 50 पैसे को देख दुकानदार बेइज्जत कर लेने से मना कर दे रहे है ,|
ये अब केवल खेल व रद्दी की मुद्राए -सिक्के है ,|ये कही स्वीकार नहीं होगी , अब उस लड़के को उदासी ब्याकुलता ने घेर लिया , और चेहरा सफ़ेद पड़ गया , |
उसके तमाम अपेक्षाए सपने और कर्म बेकार जो चले गए थे , उसे इस तिकड़म का दुरो तक अंदाजा नहीं था , जिस देश से उम्मीदे थी , उसी देश ने उसके उम्मीदों पर पानी फेर दिया था , |
अपने ही द्वारा इक्कठे किए गए पैसो को देखकर भी उसकी खुशी के रंग मे कमी थी , उसे लगा वह ठग लिया गया है ,|||
ये महगाई अटल सरकार से चल , कारगिल युद्ध लड़ आज यहा पहुच गयी है ,| अंत मे यही कि पैसे के लिए देश के लिए कुछ भारतीय सीमा पर शहीद होते है तो विडंबना दूसरी तरफ पैसे के अभाव मे भुखमरी हो रही है , यहा क्लिक कर मेरी ये रचना भी पढे ...।http://indianthefriendofnation.blogspot.in/2010/02/1.html
अंत मे यही की जब एक सिक्को की परंपरा नहीं निभी तो हम एक देश की परंपरा कहा तक निभा पाएगे ,||
लेखक ;- व्यथित ...रविकान्त यादव
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