कौरव व पांडवो के बीच अब युद्ध निश्चित था ,जोड़ तोड़ की राजनीती दोनों तरफ थी , बासुदेव श्री कृष्ण सूर्यपुत्र कर्ण को पांडव भ्राता व जेष्ठ होने की दुहाई देकर सत्य की लड़ाई में अपनी तरफ करना चाहते थे ,।
कर्ण ने अपनी , दुर्योधन की दोस्ती पर कुठाराघात न करने की सलाह दी , तथा अपने ही लोगो से अपमानित होने वाली बाते कही ।
कृष्ण ,कर्ण से पूछते है , कि आपकी पहचान क्या है ,। मै आपको क्या सम्बोधित करू क्यों की आप अपने ही भाइयो के विरूद्ध है ।
कर्ण श्री कृष्ण को समय की कीमत व आवयश्कता को गिनाने लगा , तब श्री कृष्ण बोले हे वीर योद्धा मै आपको सर्वोच्च पदवी कौन से शब्द से सम्बोधित करू, मेरी सहायता करे , कर्ण बोला आप दुसरो की तरह मुझे दानवीर कह सकते है ।
कृष्ण ,कर्ण से बोलते है ,क्या आप एक वृक्ष से बड़े दानवीर है । कर्ण शांत था और कृष्ण प्रशन वाचक। …।
एक वृक्ष जो परोपकार करता है ,लेकिन उसकी जड़े नहीं दिखती ,शीसम तो अपनी जड़ो को भी बिसरने नहीं देता ,तथा उनको भी अधिकार देता है ,एक वृक्ष फल होने पर झुक जाता है , अपनी प्रकिृति को बनाये रखता है ,धोखा नहीं देता शांत, स्वयं निर्भर रहता है , एक वृक्ष बनना बहुत बड़ी उपलब्धि है,यह हिन्दू धर्म में मोक्ष का एक और मार्ग है ,क्यों की सबकुछ होते हुए भी उसका कुछ नहीं होता । व सभी को सामान भेदभाव मुक्त सेवा देता है , । पक्षी हो या पथिक भेद भाव रहित होता है , मुसीबते आप को और भी निखार देती है , सोना तप कर और भी चमकीला हो जाता है , जो एक वृक्ष सिखाता है ,आंधी ,तूफान ,की तरह जीवन में आई समस्या का सामना करो उनके अनुकूल बनो अपनी डालियो को त्याग कर बलिदान और अपनी बुराइयो को त्याग करने का सन्देश भी देता है । महारथी कर्ण एक चन्दन का वृक्ष था ,। यह हमारे व्यक्तिव पर निर्भर है ,कि हम कौन से वृक्ष है ।
लेखक ;- पेड़ -पौधों से.…रविकन्त यादव
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