अमर होने से तात्पर्य है , कर्म , पहले वह कर्म तो हो जिससे हम अमर हो जाय , एक फिल्म में कहा गया है , सौ साल जीना जरुरी नहीं है , एक दिन में वह कार्य करो जो सौ साल के बराबर हो ।
अमर कौन है ? अमर वही है , जो कोई वर नहीं चाहता कोई इच्छा नहीं रखता जैसा की एक फिल्म forbidden kingdom में एक चरित्र बताता है, यदि हम अपने इच्छाओ व मोह को त्याग ,साथ मिलकर, दुःख सुख मिलकर जिए वह अमरता से बेहतर होगा ।
वरन प्रभु उसकी बात ही नहीं मानते बल्कि उसे अटल व तारो में सबसे पवित्र व चमक से परिपूर्ण तारा बना देते है ,सच है जहा प्रेम , निस्वार्थ भाव ,व तप है , वही अमर है ।
एक पत्थर अहिल्या जो रामायण में थी , अमर थी । , उसे पत्थर बनने का श्राप मिला था , फिर भी उसे शाप से मुक्ति चाहिए थी , वह अमरता किस योग्य जहा पत्थर ही बनना पड़े । अर्थात अमरता अभिशाप के समतुल्य जो जाती है ।
तमाम पौराणिक कहानियो में दानव कठोर तप करते है , सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा आकर उनसे वर मांगने को कहते है , तो वो अमरता का वर मांगते है ,? ब्रह्मा कहते है , कुछ भी अमर नहीं है ,अर्थात इसके समतुल्य कोई वर मांगो ,
जब हम जानते है ,कि कुछ भी अमर नहीं है , तो अमर होना कैसी चाहत है ,? सच कहु तो अमर होने के हम स्वयं अधिकारी नहीं है । हम यह तय नहीं कर सकते , सूरज -चाँद १२-१२ घंटे ही रहते है , हवा -जल भी एक सी नहीं रहती , पेंड -पौधे भी विरासत में अपने बीज ही छोड़कर निर्जीव हो जाते है , ये सभी अधिकार व नवीनता के लिए अत्यंत आवयश्क है , सच कहु तो हम अमर है , परन्तु हम देख नहीं पाते , हमारा योगदान सर्वदा है , उपयोग व पहचान की कीमत पर ।
बहुत सी कहानियो मैंने पढ़ा है , जो अमर हो गये वो पछताते है , मरने के लिए ,जैसे एक अस्वस्थामा की कहानी है । सच कहु तो जीवन का आनंद मरने में ही है ,
शायद जो ज्ञान व कार्य मै जीते जी न कर पाउ तो वो मरने के बाद सुलभ हो , चाहतो व इच्छाओ का अंत नहीं है , बसर्ते सबकी एक सीमा है ? आगे जाकर मै मरना चाहता हु ,क्योकि उसके बाद ही मै अमर हु !!
लेखक;- लड़के ....... रविकान्त यादव facebook.com /ravikantyadava
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