Saturday, May 5, 2012

आर्थिक युग



सतयुग , त्रेता , द्वापर के बाद कलयुग आता है , पर वास्तव मे ये कलियुग न होकर आर्थिक युग है , पैसा सबकुछ हो गया है , जिसके पास पैसा नहीं उसे कोई नहीं पुछता रिस्तेदार भी उसे भूल जाते है ,|
यदि किसी के जेब मे कोई हज़ार का नोट है , तो उसकी ऊर्जा देखते बनती है , |
उसे एनर्जि कहा से मिलती है , क्या निर्जीव पैसे से ?


ये पैसा गलत-सही के बीच का फासला मिटा दे रहा है ,तभी तो लोग कहते है घोर कलयुग आ गया है ,|

हर व्यक्ति बस पैसा लूट लेना चाह रहा है ,| जिसके पास पैसा है , उसके न जाने कहा-कहा  से दोस्त रिस्तेदार, संबंधी पहुचते रहते है , परंतु जिसके पास पैसा नहीं है , तो डर के मारे उसके पास कोई भी रिस्तेदार संबंधी नहीं जाते ,| पर हमभूल गए है ,आज भी अन्न ही ग्रहण किया जाता है और आगे भी ,|
आज कोई कुछ नहीं बनना चाहता , बस बनकर तिकड़म से पैसा कमाना चाहता है ,पैसे की भूख कभी शांत  नहीं होती ,|
एक बार एक राजा मिडास ने वरदान मांगा की वह जो छु दे वह सोना बन जाये, उसने खूब सोना बनाया , पर जब खाने बैठा , उसे छुआ तो वह कडक सोना बन गया , गलती से उसने अपने बेटी को छुवा तो वह भी सोना बन गयी , रोते गाते उसने पानी पीना चाहा तो वह भी सोना बन गया ,|
पैसे को सबकुछ मान वह स्वयं अपनी ज़िंदगी संकट मे डाल नर्क बना लिया था ,|


आज बात , प्यार , सम्मान , अपराध , सभी इसी से प्रारंभ और यही से अंत है , लोग आज कल मानवता नहीं पैसे की भाषा ज्यादा पसंद करते है ,| पैसे के नसेड़ी पैसा पाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोडते ,वो कहते है बस पैसा मेरे हाथ मे आ जाये ,,|


अब क्या किया जा सकता है ,? क्यो की ये आर्थिक युग है ,| अंत मे यही ,एक सच्चे गरीब का जीवन गलत -भोगी अरबपति से ज्यादा सार्थक होता है , |

लेखक;- ज़ेब से ...राविकान्त यादव















2 comments:

  1. सही कहा है ॥आज सब कुछ पैसा ही हो गया है ....यहाँ तक की पैसा ही भगवान है

    ReplyDelete
  2. aak kee kadwi sachaai, jiwan par haavi - PAISA.
    nek dil vyakti kee izzat aur poochh me bhaari kami aayi hai.

    paisa bahut jaruri hai phir bhee mera man nek dil vyaktiyon ko dhundtha rahta hai.

    ReplyDelete