आज भारतीय इतिहास मे फिल्मों का 100 साल का सफर पूरा हो चुका है , पहली फिल्म राजा हरीशचंद से लेकर पहली बोलती फिल्म आलम आरा से लेकर , स्वेत श्याम , तस्वीर से लेकर आज के 3d का सफर ,अजब -गज़ब कहानियो किरदार व गानो से भरा पड़ा है , |
कहने को तो फिल्मे समाज का आईना , नकल होती है | परंतु एक खास वर्ग बस इसी फिल्मों के पर्दे को चीरते हुए , अंदर फिल्म कलाकारो के बीच पहुच जाता है ,| और उसी दुनिया मे जीने लगता है , उसे इस तरह लव का रोग लग सकता है , | या फिल्मी स्टाइल मे मार पीट कर सकता है | या फिर अपने हीरो की तरह दिखने का जुनून उसे कुछ भी करवा सकता है ,| कुछ तो हीरो बनने को भी भाग जाते है ,|
अपने हीरो के लिये कुछ भी करना जैसे गजनी स्टाइल , कोई गाना अच्छा लगा तो बस उस पर प्रयोग आरंभ हो जाते है, जैसे तिरछी टोपी वाले , तो बस टोपी का स्टाइल , मेरा एक दोस्त फिल्मी दोस्त उसने गाना सुना हाथो मे आ गया जो कल रुमाल आपका तो बस क्या था ,| 4-6 रुमाल खरीद हाथो मे पकड़े रहना , गले मे लपेट बांधना तथा कलाई मे लपेटना ,|
उसी दोस्त ने कभी हमे पापी गुड़िया फिल्म के संदर्भ मे बताया था ,| आज वो पापी गुड़िया वही की वही है , परंतु हम बड़े जरूर हो गए है ,| इस देश मे विश्व मे सबसे ज्यादा फिल्मे बनती है ,| हर हफ्ते तो केवल हिन्दी 4-5 फिल्मे आती जाती है , अगर हिन्दी को जोड़कर तमिल , मराठी , बंगाली , कन्नड , मलयालम तमाम को जोड़ दे तो पूरे भारत मे 800 फिल्मे प्रतिवर्ष बनती है ,| अब तो अपनी भोजपुरी भी लाइन मे लगी रहती है |, एक्शन , थ्रिल्लर, suspence , हॉरर, ड्रामा, कॉमेडी , रोमांटिक, विज्ञान, fantacy, पौराणिक ,कार्टून, tragedy , तमाम आदि वर्गो मे फिल्मे बनती है , वर्तमान मे अन्य सूत्रो से भारत मे 1000 और 1500 फिल्मों का आंकड़ा,, प्रतिवर्ष है ,|
फिल्मे इतनी ज्यादा बनती है , कि एक -एक नाम से 2-4 फिल्मे तक है , और तमाम रीमेक तक बनती है ,| प्रशन यह है , आपको अपने 7-8-9 वी के बच्चो को फिल्मी चक्कर और इसके वाइरस से बचा कर रखना है ,| यही नहीं ,रोगो के घर धूम्रपान सिगरेट कि 80% लत प्रेरणा ये बच्चे फिल्मों से ही पाते है , अतः उन्हे फिल्मी रोग न होने पाये , उसे अपनी दुनिया मे जीने कि आदत हो |
अंत मे यही की यदि आपको फिल्मों मे विशेष रुचि हो तो 1 से लेकर 59 रास्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी खंगाले , दादा साहब फालके के प्रथम सफर के साथ आज हम 10 राहो पर है , | अब तो स्पेशल इफैक्ट का जमाना है |
लेखक ;- फिल्मेरिया फिल्मी चस्का ...रविकान्त यादव
कहने को तो फिल्मे समाज का आईना , नकल होती है | परंतु एक खास वर्ग बस इसी फिल्मों के पर्दे को चीरते हुए , अंदर फिल्म कलाकारो के बीच पहुच जाता है ,| और उसी दुनिया मे जीने लगता है , उसे इस तरह लव का रोग लग सकता है , | या फिल्मी स्टाइल मे मार पीट कर सकता है | या फिर अपने हीरो की तरह दिखने का जुनून उसे कुछ भी करवा सकता है ,| कुछ तो हीरो बनने को भी भाग जाते है ,|
अपने हीरो के लिये कुछ भी करना जैसे गजनी स्टाइल , कोई गाना अच्छा लगा तो बस उस पर प्रयोग आरंभ हो जाते है, जैसे तिरछी टोपी वाले , तो बस टोपी का स्टाइल , मेरा एक दोस्त फिल्मी दोस्त उसने गाना सुना हाथो मे आ गया जो कल रुमाल आपका तो बस क्या था ,| 4-6 रुमाल खरीद हाथो मे पकड़े रहना , गले मे लपेट बांधना तथा कलाई मे लपेटना ,|
उसी दोस्त ने कभी हमे पापी गुड़िया फिल्म के संदर्भ मे बताया था ,| आज वो पापी गुड़िया वही की वही है , परंतु हम बड़े जरूर हो गए है ,| इस देश मे विश्व मे सबसे ज्यादा फिल्मे बनती है ,| हर हफ्ते तो केवल हिन्दी 4-5 फिल्मे आती जाती है , अगर हिन्दी को जोड़कर तमिल , मराठी , बंगाली , कन्नड , मलयालम तमाम को जोड़ दे तो पूरे भारत मे 800 फिल्मे प्रतिवर्ष बनती है ,| अब तो अपनी भोजपुरी भी लाइन मे लगी रहती है |, एक्शन , थ्रिल्लर, suspence , हॉरर, ड्रामा, कॉमेडी , रोमांटिक, विज्ञान, fantacy, पौराणिक ,कार्टून, tragedy , तमाम आदि वर्गो मे फिल्मे बनती है , वर्तमान मे अन्य सूत्रो से भारत मे 1000 और 1500 फिल्मों का आंकड़ा,, प्रतिवर्ष है ,|
फिल्मे इतनी ज्यादा बनती है , कि एक -एक नाम से 2-4 फिल्मे तक है , और तमाम रीमेक तक बनती है ,| प्रशन यह है , आपको अपने 7-8-9 वी के बच्चो को फिल्मी चक्कर और इसके वाइरस से बचा कर रखना है ,| यही नहीं ,रोगो के घर धूम्रपान सिगरेट कि 80% लत प्रेरणा ये बच्चे फिल्मों से ही पाते है , अतः उन्हे फिल्मी रोग न होने पाये , उसे अपनी दुनिया मे जीने कि आदत हो |
अंत मे यही की यदि आपको फिल्मों मे विशेष रुचि हो तो 1 से लेकर 59 रास्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी खंगाले , दादा साहब फालके के प्रथम सफर के साथ आज हम 10 राहो पर है , | अब तो स्पेशल इफैक्ट का जमाना है |
लेखक ;- फिल्मेरिया फिल्मी चस्का ...रविकान्त यादव
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