Wednesday, May 16, 2012

स्वार्थी मेहनत

                 

एक श्रीमान जी थे , अच्छे खासे गृहस्थ और अपने कार्य हेतु पैसे कमा लेते थे ,| जिससे उनका घर द्वार अच्छे से चल जाता था ,|

एक बार वह अपने दोस्त के घर गए जो काफी अमीर था ,वहा की तड़क-भड़क देख वह भी अपने आप को धनी बनने की धुन लिए वह अपने घर आए ,| वह अच्छे खासे अपने व्यवसाय से कमा लेते थे ,|
परंतु अमीर बनने की -धुन  से वह रात दिन एक कर कार्य करते और अपने तैयार माल का गोदाम बना दिया ,उसका लक्ष्य उनको महगाई, दाम ऊपर होने पर बेचना था ,|

 उन्हे बेचकर धनी  बन जाने की इच्छा पाले , उनका संग्रह करता गया, समय बीता, मौसम बीता और
एक रात घनघोर वर्षा आई , उसके गोदाम मे पानी भर गया उनके तैयार माल खराब हो गए| , साथ ही उनकी अथक मेहनत भी व्यर्थ चली गयी , बची खुची कॉपियो को दीमकों ने जहा तहा से खा डाला था , |अब वह पछता रहे थे , उनकी मेहनत और पैसा दोनों व्यर्थ जा चुका था ,|


अब वह अपने स्वार्थी मेहनत , लालच , और दूसरों को देखकर सिर फोड़ने वाली बातों पर गौर कर पछता रहा  था  ,|अंत मे यही दूसरों पर आरोप लगाना ,कीचड़ उछालना , नकल करना आसान है , पर अपने गिरेबा मे झाकना कठिन है ,|


स्वार्थ और स्थिति के लिए ...।
सोचा न समझा बस दल बल के साथ चला ,
देखा सब कुछ पर न देखा किसी का भला ....|
कर्म ने रंग दिखाया बस वह दृश्य के मुस्कान से फला ,
समय ने स्वार्थी को दिया सजा , गया वह स्वयं के हाथो स्वयं छला|
बेरहम बारिश ने दृश्य दिखा, दिया  सब कुछ दिया गला ...||||

लेखक ;- नकल से दूर ......रविकान्त यादव













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